History of Kurta Phaad Holi: होली भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे रंगों और खुशी के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. भारत के विभिन्न हिस्सों में होली के अलग-अलग रीति-रिवाज और परंपराएं हैं, और उनमें से एक प्रसिद्ध परंपरा है “कुर्ता फाड़ होली.” यह परंपरा विशेष रूप से उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्सों में देखने को मिलती है.
क्या है कुर्ता फाड़ होली का इतिहास?
कुर्ता फाड़ होली का इतिहास बहुत पुराना है. इसे विशेष रूप से पुरुषों के बीच एक मनोरंजन के रूप में मनाया जाता है. यह परंपरा मुख्य रूप से रंगों के साथ मिलकर पुरुषों के बीच एक तरह का खेल बन गई है, जिसमें एक दूसरे के कुर्ते फाड़ने का खेल होता है. हालांकि यह एक हल्के-फुल्के मनोरंजन का तरीका है, लेकिन इसके पीछे एक दिलचस्प ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कहानी भी जुड़ी हुई है.
भगवान कृष्ण से जुड़ा है कनेक्शन
कहा जाता है कि इस परंपरा की शुरुआत तब हुई थी जब ब्रज क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण और उनके मित्र होली खेलते हुए एक दूसरे के कपड़े फाड़ते थे. यह परंपरा प्रतीक रूप में लड़ाई और आनंद का मिश्रण होता था, जो न केवल रंगों से, बल्कि एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के उत्साह से भी जुड़ा हुआ होता था. समय के साथ, यह परंपरा बदलती गई और अब इसे एक खेल के रूप में देखा जाता है, जहां लोग एक दूसरे के कुर्ते या कपड़े फाड़ने का मजा लेते हैं.
कई बार विवाद का कारण बन जाता है ये रिवाज
कुर्ता फाड़ होली के दौरान, पुरुष एक दूसरे को चुनौती देते हैं और इस खेल में जीतने की कोशिश करते हैं. इस दौरान, रंगों की बरसात भी होती है और लोग मिलकर होली के इस खेल को और भी रोमांचक बना देते हैं. हालांकि यह परंपरा कुछ जगहों पर विवादों का कारण भी बनती है, क्योंकि कभी-कभी यह खेल शारीरिक चोटों का कारण बनता है, लेकिन फिर भी यह परंपरा अपने रंगीन और मस्ती भरे अंदाज में हर साल बड़े धूमधाम से मनाई जाती है.
वर्तमान समय में, कुर्ता फाड़ होली को एक मजेदार और जोशपूर्ण परंपरा के रूप में देखा जाता है, जिसमें हर उम्र के लोग शामिल होते हैं और एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशी मनाते हैं. यह परंपरा भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा बन गई है और होली के त्योहार की खुशियों को और भी बढ़ा देती हैं.
नोट- यह जानकारी कई मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर दी गई है.
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