साल 2014 और 2019 के चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो संथाल परगना में राजनीतिक समीकरण काफी दिलचस्प रहे हैं. 2014 में एनडीए गठबंधन को यहां 7 सीटें मिली थीं, जबकि यूपीए गठबंधन ने 11 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, 2019 में तस्वीर पूरी तरह से बदल गई, जब एनडीए को सिर्फ 4 सीटें मिल सकीं, जबकि महागठबंधन ने 14 सीटों पर कब्जा जमाया. इन परिणामों से यह साफ है कि सोरेन परिवार का सियासी दबदबा ही वह कारण है, जिसके चलते बीजेपी संथाल परगना में अपनी जड़ें मजबूत नहीं कर पाई.
सोरेन की सत्ता और पार्टी की साख दांव पर
इन आंकड़ों को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) अपनी राजनीतिक स्थिति बचाने में सफल रह सकती है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह दूसरा चरण आसान नहीं होने वाला है. खासकर इस बार बीजेपी ने इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत की है, ताकि वह अपनी सीटों की संख्या बढ़ा सके. इसके परिणामस्वरूप, कांग्रेस की सबसे बड़ी चिंता यह है कि वह अपनी सीटों को बचाए रखे.
PM मोदी और केंद्रीय मंत्रियों की रणनीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ही दिन में संथाल परगना में दो बड़ी चुनावी सभाओं को संबोधित किया. इसके साथ ही अमित शाह, जेपी नड्डा और कई केंद्रीय मंत्रियों ने भी इस क्षेत्र में अपनी चुनावी ताकत झोंक दी है. बीजेपी के इस जोरदार अभियान के कारण, कांग्रेस के लिए अपने वोट बैंक को बनाए रखना और अपनी सीटों पर मजबूत प्रदर्शन करना और भी महत्वपूर्ण हो गया है.
कांग्रेस अपनी सीटें बचा पाएगी ?
कांग्रेस के लिए दूसरा चरण एक बड़ी चुनौती पेश कर रही है, क्योंकि जिन 13 सीटों पर वह चुनाव लड़ रही है, उनमें से 9 सीटें वह 2019 में जीत चुकी थी. ऐसे में अगर कांग्रेस इन सीटों पर अच्छे परिणाम नहीं देती है, तो हेमंत सोरेन की सत्ता में वापसी की राह और भी मुश्किल हो सकती है. इस प्रकार, हेमंत सोरेन की सरकार की उम्मीदें अब कांग्रेस के प्रदर्शन पर निर्भर हैं. अगर कांग्रेस अपने कोटे की सीटों पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई, तो झारखंड की सियासत में बड़े बदलाव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
सोरेन की सत्ता पर असर डालेगी कांग्रेस
संथाल परगना में कांग्रेस का प्रदर्शन न केवल उसकी साख के लिए अहम है, बल्कि यह हेमंत सोरेन की सत्ता में वापसी की उम्मीदों का भी निर्धारण करेगा. दूसरी चरण की चुनावी लड़ाई में जो भी पक्ष जीत हासिल करता है, वह झारखंड की आगामी सियासी दिशा को प्रभावित करेगा. कांग्रेस के लिए यह चुनावी परीक्षा अपने भविष्य और राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी को बनाए रखने के लिहाज से अहम साबित हो सकता है.