Tips For Weak Jupiter : लोगों के जीवन में घटित होने वाली घटनाएं हमारी ग्रह और कुंडली से जुड़ी होती है.अगर आपकी कुंडली में ग्रह की स्थिति कमजोर है, तो आपको कई नुकसान हो सकते हैं, आपको कई सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन आपको घबराने की जरूरत नहीं है, आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि कमजोर ग्रह की स्थिति को मजबूत कैसे कर सकते हैं. अपनी कुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति कैसे सही कर सकते हैं. इसके लिए कई सारे उपाय बताए गए हैं, जिन उपायों को करने से आपकी कुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति सही हो सकती है.
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गुरुवार के दिन करें ये उपाय
1. गुरुवार को दिन व्रत रखना होता है शुभ
गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित दिन है. जिस व्यक्ति की कुंडली में बृहस्पित की स्थिति कमजोर है, तो उनको गुरुवार के दिन व्रत रखना चाहिए. इससे आपकी कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत होगी. इस दिन जो व्यक्ति व्रत रखता है, उससे भगवान विष्णु बेहद प्रसन्न होते हैं.
2.गुरुवार के दिन इस विधि से रखें व्रत
अगर आपकी कुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति कमजोर है, तो आपको गुरुवार के दिन व्रत रखना चाहिए. इसके लिए 16 दिन बृहस्पति भगवान के लिए व्रत रखना चाहिए. अगर आप 16 दिनों तक व्रत नहीं रख सकते हैं, तो आप 1,3,5,7 और 9 बृहस्पति गुरु के लिए व्रत रख सकते हैं.
3.इस सही विधि से रखें व्रत
सबसे दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें, उसके बाद पीला वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत संकल्प लें. उसके बाद इनकी विधिवत पूजा करें.
4.बृहस्पतिवार के दिन पीला वस्त्र है शुभ
भगवान विष्णु को पीला रंग बेहद पसंद है. इस दौरान अगर आप पूजा कर रहे हैं, तो पीला फूल ही भगवान विष्णु को अर्पित करें. इस दिन घी का दीपक और धूप जलाएं और बृहस्पति देव के व्रत का पाठ अवश्य करें. इसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु की आरती करें.
5.व्रत का सही विधि
जो व्यक्ति व्रत रखता है, उसे बृहस्पतिवार के दिन केले के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं और भोग लगाएं. उस दिन फलहार व्रत ही रखें. धूप दीपक जलाने के बाद कथा का पाठ करें.
6.गुरुवार के दिन करें आरती
जय वृहस्पति देवा,
ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगाऊँ,
कदली फल मेवा ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर,
तुम सबके स्वामी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
चरणामृत निज निर्मल,
सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक,
कृपा करो भर्ता ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
तन, मन, धन अर्पण कर,
जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर,
आकर द्घार खड़े ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
दीनदयाल दयानिधि,
भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता,
भव बंधन हारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
सकल मनोरथ दायक,
सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ,
संतन सुखकारी ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
जो कोई आरती तेरी,
प्रेम सहित गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर,
सो निश्चय पावे ॥
ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥
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सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।
बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥