इन दिनों बाजार में एसयूवी की धूम है. जितनी भी नई कारें बिक रही हैं, उनमें से अधिकतर कारें SUV हैं. फाडा की सितंबर 2023 की रिपोर्ट बताती है कि बाजार में एसयूवी ओर लक्जरी कारों की डिमांड लगातार बढ़ रही है. लेकिन ऐसा कैसे? एंट्री लेवल कारें क्यों कम बिक रही हैं? हैचबैक कारें लोगों को पसंद आनी कम क्यों हो गई हैं और सेडान कारों से लोगों का मोह भंग होता जा रहा है? ऑटो सेक्टर का ये ट्रेंड क्या कहता है? चलिए जानने समझने की कोशिश करते हैं.
SUV ही क्यों बिक रही है इन दिनों ज्यादा?
सबसे पहले बात करेंगे कि आखिर सितंबर 2023 में कितनी कारें बिकी हैं. तो जवाब ये है कि तीन लाख 32 हजार 248 कारें सितंबर में बिकी हैं. पिछले साल यानी सितंबर 2022 में करीब 2 लाख 80 हजार कारें बिकी थीं. इस सितंबर में मर्सीडीज, बीएमडब्ल्यू, वोल्वो, पोर्शे, और जगुआर जैसी कारों के प्रति भी लोगों का मोह देखा गया. वहीं एसयूवी भी दबाकर बिकी हैं. हालांकि मारुति का मार्केट शेयर 42 प्रतिशत के पार रहा है. उसने करीब एक लाख 40 हजार कारें बेची हैं. हुंडई ने करीब 50 हजाीर, टाटा ने करीब 39 हजार, महिंद्रा ने करीब 33 हजार, किया ने 21 हजार, टोयोटा ने करीब 18 हजार और होंडा ने करीब 7 हजार कारें बेची हैं. अब इससे ये पता चलता है कि महामारी के बाद से ऑटो सेक्टर में के-शेप रिकवरी अब साफ दिख रही है. एंट्री लेवल की गाड़ियां कम बिक रही हैं और एसयूवी की बिक्री जोर पकड़ रही है. हुंडई ने हाल ही में एक्सटर को बाजार में उतारा है और होंडा ने भी अपनी एलिवेट को मार्केट में लॉन्च किया है. वजह ये मानी जा रही है कि जो लोग बाइक से कारों की ओर जाते थे, पहली गाड़ी छोटी खरीदते थे, वो अब अपनी योजनाओं को शायद टाल रहे हैं. वहीं जो लोग मिड सेगमेंट की कारें खरीदते थे, हैचबैक और सेडान खरीदते थे वो अब एसयूवी खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. महिंद्रा, किया, टोयोटा, और टाटा की एसयूवी लोग खासा पसंद कर रहे हैं वहीं मारुति भी अब इसी सेक्टर में आगे बढने की कोशिशें करती नजर आ रही है.
50 हजार करोड़ का इनवेस्ट कहां करेगी मारुति?
ऐसी खबरें हैं कि मारुति सुजुकि इंडिया लिमिडेट साल 2030-31 तक 50 हजार करोड़ से भी अधिक का इनवेस्टमनेंट करने का प्लान बना रही है. कंपनी का मार्केट शेयर अभी 42 फीसद है और कंपनी इसे बढाना चाहती है. अपने नेटवर्क को और मजबूत करना चाहती है साथ ही अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को भी और बेहतर बनाना चाहती है. कंपनी का इरादा अपनी उत्पादन क्षमता को दोगुना करने का है. कंपनी चाहती है वो साल में 40 लाख वाहन बनाए. 2031 तक कंपनी अपने व्हीकल एक्सपोर्ट को बढाकर साढे सात लाख सालाना पर ले जाना चाहती है. हरियाणा के खरखौदा में एक नया प्लांट लगाना चाहती है. इस प्लांट की सालाना क्षमता करीब ढाई लाख वाहनो की होगी. मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव ने कहा है कि कंपनी फिलहाल अपने उत्पादन और अपने निर्यात को बढाना चाहती है और इसके लिए वो इंफ्रा, मार्केटिंग, सेल्स टीम को मजबूत करेगी. कंपनी का प्लान एक 10 लाख वाहन उत्पादन की क्षमता वाले प्लांट का निर्माण भी है. इसके लिए जगह पर विचार किया जा रहा है. अब ऐसे में सवाल ये कि जब बाकी कंपटीटर कंपनी से इतना पीछे हैं तब भी कंपनी इतना बड़ा निवेश क्यों करना चाहती है. वजह है एसयूवी. जी हां, अभी तक मारुति को एक आम भारतीय की कार माना जाता था. ऐसी कारें बनाने वाली कंपनी जो किसी भारतीय को उसकी पहली कार देती थी. लेकिन अब मार्केट बदल रहा है. लोग महंगी कारों की तरफ जा रहे हैं और यही कारण है कि पिछले कुछ वक्त से मारुति ने भी सेगमेंट चेंज करने का फैसला किया है. अब मारुति ग्रैंड विटारा से लेकर ब्रेजा तक बना रही है और फ्रॉन्क्स से लेकर जिम्नी तक बना रही है. आगे कंपनी क्या कुछ बनाएगी वो भी पता चलेगा. चलिए फिलहाल समझते हैं फेस्टिव में कैसा रहेगा ऑटो सेक्टर.
ऑटो सेक्टर के लिए कैसा रहेगा फेस्टिव सीजन?
त्योहारों के मौसम में लोग कारें खरीदना पसंद करते हैं. यही वजह है कि भारतीय कार कंपनियां इस मौसम में अधिकतर कारें लॉन्च करती हैं. इस बार फेस्टिव सीजन में टाटा हैरियर फेसलिफ्ट से लेकर महिंद्रा बोलेरो तक और टाटा सफारी से लेकर टोयोटा अर्बल क्रूजर तक के नए मॉडल आ रहे हैं. होंडा ने भी अमेज और सिटी के नए स्पेशल वैरिएंट लॉन्च किए हैं. साथ ही एलिवेट के नाम से एक नई एसयूवी भी मार्केट में उतारी है. ब्रोकरेज हाउस मोतीलाल ओसवाल का भी यही मानना है कि फेस्टिव सीजन में पैसेंजर व्हीकल की डिमांड अच्छी रहेगी. सालाना आधार पर इसमें करीब 11 फीसदी की ग्रोथ देखने को मिल सकती है. मॉर्गेन स्टेनली का भी यही कहना है कि रिटेल सेल्स में गति बनी हुई है. हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि महंगाई के कारण टूव्हीलर सेल डाउन जा सकती है और ट्रैक्टर आदि की खरीद पर भी असर पड़ सकता है. लेकिन कार मार्केट में ऐसा नहीं है. लोग जमकर एसयूवी खरीद रहे हैं और लगातार बढ़ रहे नंबर भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं. अब यहीं है के-शेप वाली वो बात जो हमने आपको पहले भी बताई थी. यानी एक ओर जहां महंगी कारें बिक रही हैं वहीं दूसरी ओर सस्ती कारें नहीं बिक रही हैं. इसी को के-शेप कहा जाता है.
रिपोर्ट -वरुण कुमार
Source : News Nation Bureau