Coronavirus (Covid-19): मोरेटोरियम अवधि (Moratorium Period) के दौरान कर्ज के ऊपर लगने वाले ब्याज पर ब्याज माफी की मांग वाली अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की खिंचाई की, कहा- केंद्र अब इसे ग्राहकों और बैंक के बीच का मसला बताकर अपना पल्ला झाड़ नहीं सकता है. सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि ग्राहकों को इसका फायदा मिले. आपने अदालत से समय लेने के बावजूद कुछ नहीं किया. ग्राहकों को पता है कि इस स्कीम से उन्हे लाभ नहीं मिल रहा, लिहाजा वो इसका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं.
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सरकार मोरेटोरियम के बाद हाथ खड़े नहीं कर सकती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 90 फीसदी कर्जदारों ने मोरेटोरियम (Moratorium) नहीं लिया है. कोर्ट ने कहा कि मोरेटोरियम का उद्देश्य राहत देना होना चाहिए और ब्याज पर ब्याज वसूलने से कोई राहत नहीं दिखती है. कोर्ट ने कहा कि सरकार हर फैसला बैंकों के ऊपर नहीं छोड़ सकती है. कोर्ट ने सरकार ने पूछा कि क्या सरकार ब्याज पर ब्याज माफी के पक्ष में है और सरकार मोरेटोरियम के बाद हाथ खड़े नहीं कर सकती है. सुनवाई के दौरान भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा है. बैंकों के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई अगस्त के पहले हफ्ते के लिए टाल दी है. इस दौरान केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) हालात की समीक्षा करेंगे. बैंक ये तय करेंगे कि क्या वो ग्राहकों को राहत देने के लिए कोई नई गाइडलाइन ला सकते हैं.
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बता दें कि रिजर्व बैंक ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर वह कर्ज किस्त के भुगतान में राहत के हर संभव उपाय कर रहा है, लेकिन जबर्दस्ती ब्याज माफ करवाना उसे सही निर्णय नहीं लगता है क्योंकि इससे बैंकों की वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है और जिसका खामियाजा बैंक के जमाधारकों को भी भुगतना पड़ सकता है. रिजर्व बैंक ने किस्त भुगतान पर रोक के दौरान ब्याज लगाने को चुनौती देने वाली याचकिा का जवाब देते हुये कहा कि उसका नियामकीय पैकेज, एक स्थगन, रोक की प्रकृति का है, इसे माफी अथवा इससे छूट के तौर पर नहीं माना जाना चाहिये. रिजर्व बैंक ने कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के बंद रहने के दौरान पहले तीन माह और उसके बाद फिर तीन माह और कर्जदारों को उनकी बैंक किस्त के भुगतान से राहत दी है. (इनपुट भाषा)