Coronavirus (Covid-19): कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus Epidemic) की वजह से कर्ज की अदायगी में छूट की अवधि के दौरान ब्याज में छूट की मांग की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने वित्त मंत्रालय और सभी पक्षों से RBI के हलफनामे पर जवाब दाखिल करने को कहा है. इस मामले की अगली सुनवाई 12 जून को होगी. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी कहा कि एक मोरेटोरियम अवधि (Moratorium Period) के लिए मूल धन पर कोई ब्याज न लेना, दूसरा इस अवधि के बकाया ब्याज के लिए कोई ब्याज नहीं लेना यह 2 विषय हैं.
RBI ने रेटोरियम अवधि के दौरान कर्ज पर ब्याज की माफी की मांग को गलत बताया
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने RBI के हलफनामे के मीडिया में लीक होने पर आपत्ति जाहिर की. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आगे से ऐसा न हो. बता दें कि RBI ने अपने हलफनामे में 6 महीने की मोरेटोरियम अवधि के दौरान कर्ज पर ब्याज की माफी की मांग को गलत बताया है. ऐसी मांग वाली अर्जी का विरोध करते हुए RBI ने कहा है कि ऐसा होने पर बैंको को 2 लाख करोड़ का नुकसान होगा, जिससे पूरा आर्थिक तंत्र गड़बड़ा जाएगा. बैंक ग्राहकों के हित प्रभावित होंगे.
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बता दें कि रिजर्व बैंक ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर वह कर्ज किस्त के भुगतान में राहत के हर संभव उपाय कर रहा है, लेकिन जबर्दस्ती ब्याज माफ करवाना उसे सही निर्णय नहीं लगता है क्योंकि इससे बैंकों की वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है और जिसका खामियाजा बैंक के जमाधारकों को भी भुगतना पड़ सकता है. रिजर्व बैंक ने किस्त भुगतान पर रोक के दौरान ब्याज लगाने को चुनौती देने वाली याचकिा का जवाब देते हुये कहा कि उसका नियामकीय पैकेज, एक स्थगन, रोक की प्रकृति का है, इसे माफी अथवा इससे छूट के तौर पर नहीं माना जाना चाहिये. रिजर्व बैंक ने कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के बंद रहने के दौरान पहले तीन माह और उसके बाद फिर तीन माह और कर्जदारों को उनकी बैंक किस्त के भुगतान से राहत दी है.
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कर्ज की किस्तों का भुगतान 31 अगस्त के बाद किया जा सकेगा
कर्ज की इन किस्तों का भुगतान 31 अगस्त के बाद किया जा सकेगा. इस दौरान किस्त नहीं चुकाने पर बैंक की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी. रिजर्व बैंक ने उच्चतम न्यायालय में सौंपे हलफनामे में कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के प्रसार के बीच वह तमाम क्षेत्रों को राहत पहुंचाने के लिये हर संभव उपाय कर रहा है, लेकिन इसमें जबर्दस्ती बैंकों को ब्याज माफ करने के लिये कहना उसे सूजबूझ वाला कदम नहीं लगता है, क्योंकि इससे बैंकों की वित्तीय वहनीयता के समक्ष जोखिम खड़ा हो सकता है और उसके कारण जमाकर्ताओं के हितों को भी नुकसान पहुंच सकता है. केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि जहां तक उसे बैंकों के नियमन के प्राप्त अधिकार की बात है वह बैंकों में जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता बनाये रखने को लेकर है, इसके लिये भी यह जरूरी है कि बैंक वित्तीय तौर पर मजबूत और मुनाफे में हों. शीर्ष अदालत ने 26 मई को केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक से रोक की अवधि के दौरान ब्याज की वसूली करने के खिलाफ दायर याचिका पर जवाब देने को कहा था. यह याचिका आगरा के निवासी गजेंद्र शर्मा ने दायर की. (इनपुट भाषा)