होम और ऑटो लोन को लेकर RBI गवर्नर का बड़ा ऐलान, कहा-गंभीरता से विचार करना होगा

रिजर्व बैंक के गवर्नर के अनुसार, इसे लेकर बकायदा तंत्र बनाने की आवश्यकता है. कंपनियां नियमों का पालन नहीं कर रही हैं 

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Mohit Saxena
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रिजर्व बैंक के गवर्नर ने गुरुवार को एमपीसी बैठक के बाद होम और ऑटो लोन को लेकर बड़ी चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि होम और ऑटो लोन पर टॉप अप लोन बांटने को लेकर बैंकों को निगरानी तंत्र बनाना चाहिए. यह मुद्दा कुछ बैंकों से जुड़ा हुआ है. इसे लेकर बकायदा तंत्र बनाने की जरूरत होनी चाहिए. 

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गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, टॉप अप लोन बांटने में बैंक और अन्‍य फाइनेंस कंपनियां नियमों का पालन नहीं कर रही हैं. इसकी वजह से वित्‍तीय क्षेत्र की स्थिरता पर दिखाई दे रहा है. बैंकों और एनबीएफसी को इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा. गवर्नर के कहा कि टॉप लोन बांटने को लेकर उसके खर्च होने के तरीकों की निगरानी और स्क्रूटनी करने का तंत्र तैयार किया जाए. इससे किसी गंभीर समस्‍या से बचा जा सकेगा. 

कहां हो रही गड़बड़ी

गवर्नर शक्तिकान्त दास ने कहा कि आवास ऋण के ऊपर कर्ज (टॉप-अप) में  बढ़ोतरी सभी बैंकों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह कुछ इकाइयों तक ही है. उन्‍होंने कहा, ‘टॉप-अप आवास कर्ज में नियामकीय आवश्यकताओं का पालन कुछ इकाइयों की ओर से नहीं किया जा रहा है और यह कोई प्रणाली-स्तर की समस्या नहीं है. ऐसे केस को पर्यवेक्षी स्तर पर निपटाया जा रहा है.

गवर्नर ने क्‍यों जताई चिंता

दरअसल बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) भी गोल्ड लोन जैसे अन्य गारंटी वाले कर्ज पर टॉप-अप की पेशकश कर रही हैं. टॉप-अप कर्ज खुदरा कर्ज के साथ-साथ होम लोन के ऊपर​ लिया जाने वाला कर्ज है. गवर्नर के अनुसार, इस तरह की प्रक्रियाओं की वजह से कर्ज राशि का उपयोग गैर-उत्पादक क्षेत्रों या सट्टेबाजी के कामों में किया जा सकता है. ऐसे में बैंकों और एनबीएफसी को ऐसी प्रक्रियाओं की समीक्षा करने को लेकर सुधारात्मक कार्रवाई की सलाह दी गई है. 

नियामकीय निर्देशों का पालन करना होगा 

दास के अनुसार, इसलिए बैंकों को ऋण-से-मूल्य (एलटीवी) अनुपात, जोखिम भार और टॉप-अप के जुड़े धन के आखिरी उपयोग के संबंध में धन के अंतिम उपयोग की निगरानी से जुड़े नियामकीय निर्देशों का पालन करना जरूरी है. लोन और जमा वृद्धि के बीच अंतर से परिसंपत्ति देयता में असंतुलन या तरलता प्रबंधन की परेशानी पैदा हो सकती है. इससे बैंकिंग प्रणाली को संरचनात्मक तरलता संबंधी समस्याओं का करना पड़ सकता है.

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