मोरेटोरियम में टाली गई EMI पर ब्याज न लेने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई चल रही है. केंद्र सरकार की ओर से SG तुषार मेहता ने कहा कि कोरोना का असर हर किसी पर पड़ा है, लेकिन हर सेक्टर पर इसका असर अलग अलग है. हर सेक्टर की स्थिति पर विचार जरूरी है लेकिन बैंकिंग सेक्टर का भी ध्यान रखना होगा. बैंकिंग अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. मोरेटियम की घोषणा इसलिए की गई थी ताकि कोरोना और लॉकडाउन के चलते लोगो पर पेमेंट के दबाव को कम किया जा सके लेकिन ब्याज से छूट देना इसका मकसद नहीं था.
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RBI के सर्कुलर में बैंकों को लोन वसूली प्रक्रिया तय करने की मिली है छूट
तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि मोरेटोरियम का मकसद ही ये था कि व्यापारी अपने पास मौजूद पूंजी का इस्तेमाल कर सकें. उन पर बैंक की किश्त का बोझ न हो लेकिन इसका मकसद यह नहीं था कि ब्याज माफ कर दिया जाएगा. कोशिश है कि कोरोना से बुरी तरह प्रभावित लोगों को इसका फायदा मिले ना कि डिफॉल्टर को. जस्टिस अशोक भूषण ने सवाल किया कि क्या आपदा राहत कानून के तहत सरकार कुछ करेगी? इस पर तुषार मेहता ने कहा कि 6 अगस्त के RBI के सर्कुलर में बैंकों को लोन वसूली प्रक्रिया तय करने की छूट दी गई है. उन्हें छूट है कि वो कर्जदाताओं की सुविधा के लिहाज से ब्याज दर और इसे चुकाने की समयसीमा में बदलाव कर सकते है. एक कमेटी भी बनाई गई है, जो 6 सितंबर को रिपोर्ट देगी.
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हरीश साल्वे ने कहा कि हमें आम आदमी और कॉर्पोरेट की समस्या को अलग-अलग कर देखना होगा. एक आम आदमी की दिक्कत ज्यादा बड़ी है, जिसके पास इस मुसीबत को झेलने के लिए कोई सहारा नहीं है, कोरोना के चलते जिसकी नौकरी चली गई. उद्योगों की की समस्या अलग है, उसे अलग करके देखना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चक्रवृद्धि ब्याज के बारे में क्या कहना है. मोरेटोरियम र चक्रवृद्धि ब्याज दोनों एक साथ नहीं चल सकते. आरबीआई को ये साफ करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि जिन बैक खातों को 31 अगस्त तक NPA घोषित नहीं किया गया है, उन्हें अगले आदेश तक NPA घोषित नहीं किया जाएगा. मामले की अगली सुनवाई 10 सितंबर 2020 को जारी रहेगी.