कोरोना काल में रिजर्व बैंक (RBI) के निर्देश पर बैंकों ने कर्जदारों को अस्थायीतौर पर राहत देते हुए 6 महीने तक EMI पेमेंट नहीं करने की छूट दी थी. हालांकि यह सुविधा खत्म होने के बाद लोन मोरेटोरियम (Loan Moratorium) अवधि के लिए बैंकों की ओर से वसूले जा रहे ब्याज पर ब्याज (Interest On Interest) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कई याचिकाएं दायर की गईं. सुप्रीम कोर्ट लोन मोरटोरियम मामले पर आज यानि 23 मार्च को अपना फैसला सुनाने जा रहा है. जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच लोन मोरेटोरियम मामले पर फैसला सुनाएगी. बता दें कि जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली बेंच ने 17 दिसंबर 2020 को सुनवाई के दौरान फैसला सुरक्षित रखा था.
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1 मार्च 2020 से 31 मई 2020 के बीच टर्म लोन की EMI देने से दी गई थी छूट
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने पिछले साल मोरेटोरियम की घोषणा की थी और इसके तहत 1 मार्च 2020 से 31 मई 2020 के बीच टर्म लोन की EMI देने से छूट दी गई थी. हालांकि इस पीरियड को बाद 31 अगस्त 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया था. बता दें कि इन 6 महीने के दौरान जिन लोगों ने किस्त नहीं चुकाई उन्हें डिफाल्ट की श्रेणी में नहीं डाला गया. हालांकि बैंकों की ओर से इस अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज वसूला जा रहा था. बता दें कि सितंबर 2020 में RBI ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि लोन मोरेटोरियम की अवधि को 6 माह से ज्यादा बढ़ाने पर अर्थव्यवस्था के ऊपर नकारात्मक असर पड़ेगा.
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रिजर्व बैंक ने लोन रिस्ट्रक्चरिंग की सुविधा की भी घोषणा की है. इसके तहत कंपनियों द्वारा और व्यक्तिगत स्तर पर लिया गया कर्ज अगर तय अवधि के दौरान डिफॉल्ट होता है तो उसे NPA नहीं घोषित किया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लोन अकाउंट को रिस्ट्रक्चरिंग का उन कंपनियों या व्यक्तियों को मिलेगा जिनका कर्ज 1 मार्च 2020 तक कम से कम 30 दिनों के लिए डिफॉल्ट हुआ है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बैंकों के पास व्यक्तिगत कर्ज के लिए 31 दिसंबर 2020 तक रिजॉल्यूशन शुरू करने का मौका था.
HIGHLIGHTS
- सुप्रीम कोर्ट लोन मोरटोरियम मामले पर आज यानि 23 मार्च को अपना फैसला सुनाने जा रहा है
- जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली बेंच ने 17 दिसंबर को सुनवाई के दौरान फैसला सुरक्षित रखा था