What Is Islamic Banking: इस्लामी कानून यानी शरिया के सिद्धांत पर काम करने वाली बैंकिंग सिस्टम को ही इस्लामिक बैंकिंग (Islamic Banking) कहते हैं. इस्लामिक बैंकिंग में सबसे बड़ी खास बात यह होती है कि इसमें कोई भी ब्याज नहीं लिया जाता है. इसके अलावा किसी तरह का ब्याज भी नहीं दिया जाता है. इस्लामिक बैंकिंग में होने वाले लाभ को अकाउंट होल्डर्स के बीच बांट दिया जाता है. नियमों के तहत इस्लामिक बैंकिंग के पैसो को गैर इस्लाम के कार्यों में नहीं लगाया जा सकता है.
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इस्लामिक बैंक हथियारों की खरीद फरोख्त, जुआ, शराब और सुअर के मांस का कारोबार कर रहे लोगों का अकाउंट नहीं खोलता है. साथ ही बैंक ऐसे लोगों को कर्ज भी नहीं बांटता है. कुछ देशों में इस्लामी विद्वानों की एक कमेटी इस तरह के इस्लामिक बैंक का परिचालन करती है.
इस तरह काम करता है इस्लामिक बैंक
इस्लामिक बैंकिंग के अंतर्गत सेविंग अकाउंट, इन्वेस्टमेंट अकाउंट और जक़ात अकाउंट खोले जा सकते हैं. इस्लामी बैंकिंग में जब कोई कस्टमर अपने पैसे को अकाउंट में जमा कराता है तो बैंक की ओर से ग्राहक के पैसे को वापस करने की गारंटी दी जाती है. दुनियाभर में करीब 50 देशों में इस्लामिक बैंक काम कर रहे हैं और उन देशों में 300 से अधिक संस्थाएं इस्लामिक बैंकिग का काम कर रही हैं.
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मलेशिया में 1983 में स्थापित किया गया था इस्लामिक बैंक
साल 1963 में अहमद अल नज़र ने मिस्र में आधुनिक इस्लामी बैंकिंग प्रणाली की शुरूआत की थी और साल 1975 में दुबई इस्लामिक बैंकिंग की शुरुआत की गई था. ऐसा माना जाता है कि यह पहला ऐसा इस्लामिक बैंक है जिसने इस्लामिक अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को अपनाया था. मलेशिया में 1983 में इस्लामिक बैंक स्थापित किया गया था. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने शरीया कानून के सिद्धांतों पर चलने वाली इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली पर रोक लगा रखी है. आरबीआई का कहना है कि बैंकिंग एवं वित्तीय सेवाओं के समान अवसर पर विचार करने के बाद यह फैसला लिया गया है.