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Budget 2023: 8 शब्द और 8 कॉन्सेप्ट समझ लिए तो बजट समझ में आ जाएगा, पढ़ें और बजट के बांउसर से बचें

1 फरवरी 2023 देश का बजट संसद में पेश होगा, हर साल की तरह इस साल भी बजट स्पीच होगी, इसके बाद शुरू होगा सराहना और आलोचनाओं का दौर, सत्ता पक्ष इसे किसानों, गरीबों और मिडिल क्लास के बजट जैसी तमाम उपाधियों और रूपकों से सुशोभित करेगा

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Mohit Sharma
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Budget 2023 24

Budget 2023 24 ( Photo Credit : फाइल पिक)

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1 फरवरी 2023 देश का बजट संसद में पेश होगा, हर साल की तरह इस साल भी बजट स्पीच होगी, इसके बाद शुरू होगा सराहना और आलोचनाओं का दौर, सत्ता पक्ष इसे किसानों, गरीबों और मिडिल क्लास के बजट जैसी तमाम उपाधियों और रूपकों से सुशोभित करेगा, तो वहीं विपक्ष इसकी आलोचना करता दिखाई देगा. इन सब के इतर टीवी और अखबारों में अनगिनत विश्लेषक बुलाए जाएंगे और थोक में बजट का विश्लेषण होगा. बदस्तूर जारी ए बहस किसी एक बड़ी खबर के आने से अचानक आप के आंखों से ओझल हो जाएगी. क्या आपको कोलाहल से भरपूर ऐसे विश्लेषणों से बजट समझ में आ जाता है? अगर नहीं तो ये एक्सपेलनर आपके काम का है.

बजट क्या होता है? 

बजट हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में दस्तक देते रहता है और ए जीवन का इतना जरूरी पहलू है कि जितनी बार आप सैलरी से कहीं ज्यादा क्रडिट कार्ड बिल, दोस्तों की उधारी और खाली बैंक अकांउट देखकर अफसोस करते हैं उतनी बार बजट आपके जहन में दस्तक देता है, आपका वो अफसोस कि “कास हिसाब लगा लिया होता’’ महज अफसोस नहीं होता, दरअसल उस वक्त आप खुद से ये कह रहे होते हैं कि अपका एस्टीमेट गड़बड़ हो गया, यही एस्टीमेट ही बजट है. एक तय वक्त में आपके पास कहां से कितना पैसा आएगा और आप उसे कहां खर्च करने वाले हैं इसका एस्टीमेट लगाना ही बजटिंग है.

बजट का आकार यानी साइज कुछ भी हो सकता है, इसे तय समय सीमा और इवेंट के लिए बनाया जाता है. घर से बाहर निकल कर दिल्ली जैसे शहरों में पढ़ाई कर रहे बैचलर महीने का बजट बनाते हैं, रोज कमा कर खाने वाले रेड़ी वाले, ठेले वाले और मजदूर तबके के लोग डेली बजट बनाते हैं, घर में शादी या किसी पार्टी के लिए भी बजट बनता है, इसी तरह केंद्र सरकार देश का बजट बनाती है, जो एक साल के लिए होता है. सरकार आने वाले वित्त वर्ष में कहां से कितना कमाई करेगी और कहां कितना खर्च करेगी इसका एस्टीमेट लगाती है और देश को संसद के माध्याम से इसकी जानकारी देती है, इसे ही आम बजट कहा जाता है.

वित्त वर्ष क्या है?

यहां एक शब्द आया है वित्त वर्ष जिसे अंग्रेजी में फाइनेंशियल ईयर कहा जाता है, ये कैलेंडर ईयर की तरह जनवरी से दिसंबर तक नहीं चलता बल्कि ये 1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलता है, जाहिर है अप्रैल से मार्च के बीच हम कैलेंडर ईयर के एक सन या साल से दूसरे सन या साल में इंटर कर जाते हैं, 1 अप्रैल 2023 को शुरू होने जा रहा आगामी वित्त वर्ष 31 मार्च 2024 को खत्म होगा, यही वजह है कि वित्त वर्ष हसेशा 2 सनों के साथ लिखा जाता है, फिलहाल वित्त वर्ष 2022-23 चल रहा है जो 31 मार्च को खत्म हो जाएगा और 1 अप्रेल 2023 से नया वित्त वर्ष 2023-24 शुरू हो जाएगा. 

वित्त मंत्री 1 फरवरी को जो आम बजट पेश करने जा रही हैं वो वित्त वर्ष 2023-24 के लिए है, इसमें किया जाने वाला हर वित्तीय प्रावधान 1 अप्रैल 2023 से लागू होगा, और यही तो बजट का कंसेप्ट है! बजट हमेशा भविष्य के लिए बनाया जाता है, यानी बजट में सरकार एडवांस फांइनेनशियल एस्टीमेट बनाती है लेकिन इसे बनाने में डेटा और रिसर्च को बहुत मजबूत रखा जाता है, इसमें सांईटिफिक अपरोच और मैथेमेटिकल कैल्कुलेशन की भूमिका बेहद अहम होती है, अलग-अलग विषयों में दक्ष एक्सपर्ट इसपर काम करते हैं, साथ ही भविष्य में राष्ट्रिय-अंतरराष्ट्रिय स्तर पर आने वाली संभावित आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक चुनौतियों का भी बजट बनाने में ध्यान रखा जाता है.

बजट कितने टाइप के होते हैं?

1- सरप्लस बजट

बजट तीन तरह के होते हैं, पहला है सरप्लस बजट, हमने बजट को समझते हुए जाना कि बजट में सरकार आने वाले साल की आय यानी इनकम और व्यय यानी खर्च का एस्टीमेट लगाती है, इस हिसाब-किताब में जब खर्च की तुलना में आय यानी इनकम का एस्टीमेट ज्यादा होता है तो इसे सरपल्स बजट कहा जाता है, साधारण भाषा में समझें तो सरप्लस बजट में सरकार के पास तमााम खर्च निकालने के बाद पैसे बच जाते हैं.

2-डेफिसिट बजट

दूसरा है डेफिसिट बजट, डिफिसेट का हिंदी होता है घाटा, यह सरप्लस बजट का ठीक उल्टा होता है इसमें सरकार के खर्च का एस्टीमेट इनकम से ज्यादा हो जाता है, यानी सरकार के खर्च को पूरा करने के लिए सरकार की कमाई नाकाफी होती है.

3-बैलेंस बजट

तीसरा होता है बैलेंस बजट इसमें सरकार के खर्च का एस्टीमेट उतना ही होता है जितना की उसकी इनकम होती है. यानी सरकार जितना खर्च करना चाहती है उसकी आमदनी उतनी ही होती है. 

क्या होता है फिजिकल डेफिसिट?

भारत का बजट हमेशा दूसरे टाइप का रहा है, भारत में अबतक डेफिसेट बजट ही पेश होते आया है, सरकार घाटे की भरापाई उधार लेकर करती है, यह उधार सरकार आरबीआई, दूसरे देशों या आईएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रिय वित्तीय संस्थाओं से लेती है. इसी अंतर को फिजिकल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा कहा जाता है, दूसरी भाषा में समझें तो सरकार के कुल राजस्व और उसके कुल खर्ज के बीच के अंतर को ही फिजिकल डेफिसिट यानी राज कोषीय घाटा कहा जाता है और इस टर्म का इस्तेमाल बजट भाषण और उसके विश्लेषणों में खूब होता है.

क्या होता है करंट अकांउट डिफेसिट?

दूसरा शब्द है करंट अकांउट डिफेसिट हिंदी में चालू खाता घाटा, सेवाओं, वस्तुओं और ट्रांसफर के एक्सपोर्ट यानी निर्यात की तुलना में जब इनका इंपोर्ट यानी आयात बढ़ जाता है तो उस अंतर को चालू खाता घाटा कहा जाता है. पिछली साल 22 दिसंबर 2022 को आरबीआई ने अपनी प्रेस रिलीज में बताया कि मौजूदा वित्त वर्ष के दूसरे क्वार्टर यानी जुलाई से सितंबर के बीच भारत का करंट अकाउंट डेफिसेट 36.4 बिलियन डॉलर का रिकॉर्ड किया गया, जो जीडीपी का 4.4 फीसदी है.

एप्रोप्रिएशन बिल और कंसॉलिडेड फंड क्या है?

तीसरा और महत्वपूर्ण शब्द है एप्रोप्रिएशन बिल यानी विनियोग विधेयक इसका सीधा अर्थ यह है कि तमाम तरह के उपायों के बावजूद सरकारी खर्चे पूरे करने के लिए सरकार की कमाई नाकाफी है और सरकार को इस मद के खर्चे पूरे करने के लिए संचित निधि यानी कंसॉलिडेड फंड से धन की जरूरत है. एक तरह से वित्तमंत्री इस विधेयक के माध्यम से संसद से संचित निधि से धन निकालने की अनुमति मांगती हैं. क्या होता है संचित धन या कंसॉलिडेड फंड, संविधान के अनुच्छेद 266(1) के अनुसार सरकार को मिलने वाले सभी राजस्वों, जैसे- सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क, आयकर, सम्पदा शुल्क, अन्य कर और सरकार द्वारा दिये गए ऋणों की वसूली से जो धन प्राप्त होता है, वे सभी संचित निधि में जमा किये जाते हैं.

कैपिटल बजट क्या है?

चौथा शब्द है पूंजी बजट इंग्लिश में इसे कैपिटल बजट कहा जाता है. बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री सरकारी आमदनी का ब्योरा पेश करती हैं, उनमें पूंजीगत आय भी शामिल होती है. यानी, इसमें सरकार द्वारा रिजर्व बैंक और विदेशी बैंक से लिए जाने वाले कर्ज, ट्रेजरी चालानों की बिक्री से होने वाली आय के साथ ही, राज्यों को दिए गए कर्जों की वसूली से आए धन का हिसाब-किताब भी इस पूंजी बजट का हिस्सा है.

कैपिटल पेमेंट क्या है?

पांचवा शब्द है पूंजी भुगतान यानी कैपिटल पेमेंट सरकार को किसी तरह की परिसंपत्ति या जमीन, बिल्डिंग, मशीनरी जैसे ऐसेट के अधिग्रहण करने के लिए जो भुगतान देना होता है, वह इस कटेगरी में आता है। केंद्र सरकार द्वारा राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और सार्वजनिक उपक्रमों के लिए मंजूर किए गए कर्ज और अग्रिम राशि भी पूंजी खर्च की कटेगरी में आता है.

कैपिटल रिसिप्ट क्या है?

छठा शब्द है कैपिटल रिसिप्ट यानी पूंजी प्राप्तियां रिजर्व बैंक या अन्य एजेंसियों से प्राप्त कर्ज, ट्रेजरी चालान की बिक्री से होने वाली आमदनी के साथ ही राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को दिए गए पिछले कर्जों की उगाही और सार्वजनिक उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी बेचने से प्राप्त धन भी इसी श्रेणी में आते हैं.

योजना खर्च और गैर योजना खर्च किसे कहते हैं?

सातवां शब्द योजना खर्च, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सहायता के अलावा केंद्र सरकार की योजनाओं पर होने वाले सभी तरह के खर्चों को इसमें शामिल किया जाता है.

आठवां शब्द है, गैर योजना खर्च इसमें ब्याज की अदायगी, रक्षा, सब्सिडी, डाक घाटा, पुलिस, पेंशन, आर्थिक सेवाएं, सार्वजनिक उपक्रमों को दिए जाने वाले कर्ज और राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और विदेशी सरकारों को दिए जाने वाले कर्ज शामिल होते हैं.

बजट के महत्वपूर्ण पहलू हैं BE, RE और एक्चुअल एक्सपेंडेचर

अब हम बात करेंगे BE, RE और एक्चुअल एक्सपेंडेचर की, बजट समझने के लिए इनके मायने को समझना अहम है, इससे बजट के प्रावधानों और उसके तहत होने वाले खर्च की बेहतर समझ बनेगी.

BE यानी बजट एस्टीमेट क्या है?

सबसे पहला है BE यानी बजट एस्टीमेट , सरकार इसका आकलन करती है कि अगले एक साल में किस मंत्रालय और किस स्कीम पर कितना पैसा खर्च होगा और इसी एस्टीमेट यानी आकलन के आधार पर वित्त मंत्रालय तमााम मंत्रालयों और स्कीमों के लिए बजट में फंड का एलोकेशन करती है इसे बजट एस्टीमेट कहा जाता है. 

RE यीनी रिवाइज्ड एस्टीमेट क्या है?

ऐसा अमूमन होता रहता है कि वित्तमंत्रालय ने बजट में जितने खर्चे का अनुमान लगाया था उससे कहीं ज्यादा कई मंत्रालयों और स्कीमों का खर्च आ जाता है, एसी स्थिति में वह मंत्रालय या विभाग वित्तमंत्रालय से नंवबर के महीने में दोबारा एक्सट्रा फंड की मांग करता है, जिसके बाद वित्तमंत्रालय उसे दोबारा फंड जारी करता है, इसे RE यानी रिवाइज्ड एस्टीमेट कहा जाता है.

एक्चुअल एक्सपेंडेचर क्या होता है?

एक्चुअल एक्सपेंडेचर का सीधा मतलब होता है कि सरकार ने वास्तव में अलग-अलग मंत्रालयों और याजनाओं के मदों में कितना खर्च किया. अब इसमें समझने वाली बात यह है कि इस बजट में वित्तमंत्री अगले वित्तवर्ष यानी 2023-24 के लिए अलग-अलग मंत्रालयों और स्कीमों का बजट आकलन यानी BE का लेखा-जोखा रखेंगी. साथ ही मौजूदा वित्तवर्ष यानी 2022-23 के लिए रिवाइज्ड एस्टीमेट यानी RE का लेखा-जोखा रखेंगी, इस बजट में वित्तमंत्री पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में सरकार का एक्चुअल एक्सपेंडेचर कितना रहा उसका भी लेखा जोखा रखेंगी.

तो BE यानी सरकार का अगले साल के लिए बजट आकलन, RE यानी सरकार ने मौजूदा साल में बजट एलोकेशन में क्या बदलाव किए हैं और एक्चुअल एक्सपेंडेचर सरकार ने पिछले वित्तवर्ष में वास्तव में कितना खर्च किया. इसे अगर एक दूसरे नजरिए से देंखें तो, BE यानी बजट एस्टीमेट सराकर के खर्च करने के इंटेसन को दर्शाता है, RE यानी रिवाइज्ड एस्टीमेट सरकार के खर्च करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है और एक्चुअल एक्सपेंडेचर सराकर के सच को उजागर करता है कि उसने कितना कहा था और कितना खर्च किया.यह पहलू हर साल आपके बजट का हिस्सा होता अगर ये नहीं समझे तो बजट समझना मुश्किल हो जाएगा.

HIGHLIGHTS

  • समझिए कि बजट से कहीं ज्यादा आ जाए खर्च तो क्या करती है सरकार

  • बजट एस्टीमेट, रिवाइज्ड एस्टीमेट और एक्चुअल एक्सपेंडेचर में है बजट की असली कहानी

Source : Aditya Singh

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