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Budget 2024: बजट की शुरुआत में शेरो-शायरी का है पुराना अंदाज, आज भी चर्चाओं में है ये ट्रेंड

इस साल का आम बजट संसद के बजट सत्र में पेश किया जाएगा. आम तौर पर बजट भाषण बहुत गंभीर होता है. फिर भी कई सालों से आम तौर पर देखा जाता रहा है कि वित्त मंत्री बजट भाषण के दौरान सदन में कविता सुनाकर माहौल को सामान्य बनाने की कोशिश करते हैं.

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Ritu Sharma
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Budget 2024 news today

बजट सत्र में शायरी( Photo Credit : News Nation )

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Budget 2024:  संसद का बजट सत्र 2024 जल्द ही शुरू होने वाला है और इस सत्र में इस साल का आम बजट पेश किया जाएगा. चुनावी साल होने के कारण सरकार ने पहले अंतरिम बजट पेश किया था, जिससे रूटीन कामकाज के लिए धन की व्यवस्था की जा सके. इस बार के आम बजट से आम लोगों को राहत की काफी उम्मीदें हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में शेर-ओ-शायरी का उपयोग करने की संभावना है, हालांकि, पिछले साल 2023 के बजट भाषण में उन्होंने कोई शेर या कविता शामिल नहीं की थी.

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शायरी का है खास महत्त्व

आपको बता दें कि आम बजट भाषण बेहद गंभीर होता है, फिर भी कई वर्षों से देखा गया है कि वित्त मंत्री अपने बजट भाषण के दौरान शेर-ओ-शायरी या कविताएं शामिल करते हैं. इसका उद्देश्य सदन का माहौल हल्का-फुल्का बनाना और सदस्यों के मनोबल को बढ़ाना होता है. यहां तक कि कम बोलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी जब वे वित्त मंत्री थे, तब शायरी सुनाकर सदन को मेज थपथपाने पर मजबूर कर दिया था. पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के हर भाषण में कविताएं शामिल होती थीं, जो बजट को चर्चा का विषय बना देती थीं.

डॉ. मनमोहन सिंह का अंदाज

बता दें कि 1991-92 में देश के वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने बजट भाषण में अल्लामा इकबाल का यह शेर पढ़ा था, ''यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामोनिशान हमारा.'' इस शेर ने पूरे सदन को तालियों की गड़गड़ाहट से भर दिया था. 1992-93 के बजट भाषण में उन्होंने फिर से शेर का सहारा लिया और विपक्ष पर निशाना साधा, ''तारीखों में ऐसे भी मंजर हमने देखे हैं, कि लम्हों ने खता की थी और सदियों ने सजा पाई.''

यशवंत सिन्हा और ममता बनर्जी की शायरी

वहीं 2001-02 में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने बजट भाषण में सरकार की नीतियों का बखान करते हुए यह शेर पढ़ा था, ''तकाजा है वक्त का कि तूफान से जूझो, कहां तक चलोगे किनारे-किनारे.'' वहीं, 2011-12 में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने रेल बजट पेश करते हुए विपक्ष पर निशाना साधते हुए ये शेर पढ़ा था, ''हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती.''

अरुण जेटली का शायरी से भरा भाषण

इसके अलावा आपको बता दें कि 2015 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट भाषण में यह पंक्तियां पढ़ीं, ''कुछ तो फूल खिलाये हमने और कुछ फूल खिलाने हैं, मुश्किल ये है बाग में अब तक कांटें कई पुराने हैं.'' 2016 में अरुण जेटली ने पूर्ववर्ती सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ''कश्ती चलाने वालों ने जब हार कर दी पतवार हमें, लहर-लहर तूफान मिले और मौज-मौज मझधार हमें, फिर भी दिखाया है हमने और फिर ये दिखा देंगे सबको, इन हालातों में आता है दरिया करना पार हमें.'' वहीं 2017 में उन्होंने यह पंक्तियां पढ़ीं, ''इस मोड़ पर घबराकर न थम जाइए आप, जो बात नई उसे अपनाइए आप. डरते हैं नई राह पर क्यूं चलने से, हम आगे-आगे चलते हैं आइए आप.''

निर्मला सीतारमण की उम्मीद

साथ ही आपको बता दें कि 2019 में आम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह शेर पढ़ा, ''यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट लेकर भी चिराग जलता है.'' पिछले बजट भाषण में उन्होंने कोई शेर नहीं पढ़ा था. अब एक बार फिर एनडीए सरकार में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करने जा रही हैं. देखना यह होगा कि इस बार वे अपने बजट भाषण में शेर-ओ-शायरी का सहारा लेती हैं या नहीं.

HIGHLIGHTS

  • बजट की शुरुआत में शेरो-शायरी का है पुराना अंदाज
  • आज भी चर्चाओं में है ये ट्रेंड
  • शायरी का है खास महत्त्व

Source : News Nation Bureau

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