कार्यकाल के आखिरी बजट में लोकसभा चुनाव मिशन 2019 के लिए पीएम मोदी का सॉलिड दांव

पीएम मोदी को किसानों की असल ताकत का अहसास मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवाने के बाद ही हुआ है.

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Sunil Chaurasia
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कार्यकाल के आखिरी बजट में लोकसभा चुनाव मिशन 2019 के लिए पीएम मोदी का सॉलिड दांव
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किसी चुनाव से पहले सरकार के पास बजट के रूप में लोगों का लुभाने का एक बड़ा हथियार होता है. बजट के जरिये चुनाव में बाज़ीगर बनने का दांव भी हर सरकार खेलती है, हर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री भी खेलता है. पीएम मोदी पिछले 5 साल से खुद को सख्त फैसले लेने वाला पीएम साबित कर रहे हैं. सिर्फ बजट ही नहीं नोटबंदी, जीएसटी जैसे मसलों पर भी उन्होंने खुद को सख्त फैसले लेने वाला पीएम साबित किया. ऐसे फैसलों के साथ ही पीएम मोदी लगातार ये एलान भी करते रहे कि देश को तरक्की की ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए वे सख्त फैसले लेते रहेंगे. बजट के ठीक बाद लोकसभा चुनाव की घंटी बजने वाली है. पीएम मोदी ने भी वही किया जो अपेक्षित था, लेकिन पीएम मोदी के दांव हमेशा कुछ हटकर ही हुए हैं. इसलिए अपनी मौजूदा सरकार के आखिरी और अंतरिम बजट में लोकसभा चुनाव के मिशन 2019 को साधने के लिए पीएम मोदी ने सबसे सॉलिड दांव चला. इस दांव में पीएम मोदी ने किसान से लेकर कारोबारी तक, मध्यम वर्ग से लेकर पेंशनर तक, हर किसी को लुभाने का दांव चला है. इस दांव की कामयाबी इस बात पर टिकी है कि पीएम मोदी ने बजट में जो बाज़ीगरी की है, उसे विपक्ष कितनी दमदारी से सामने ला पाता है.

किसानों को सीधे कैश का दांव
पीएम मोदी को किसानों की असल ताकत का अहसास मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवाने के बाद ही हुआ है. लिहाजा तय था कि इस बजट में किसानों पर मेहरबानी बरसेगी. किसानों की वजह से तीन राज्यों में सत्ता गंवाने के साथ ही पीएम मोदी के सामने एक और उदाहरण भी था. तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) की सत्ता में वापसी. माना जाता है कि केसीआर की सत्ता में वापसी की बड़ी वजह किसानों को दिया उनका तोहफा था. केसीआर ने राज्य के किसानों को सीधे नकद रकम मुहैया कराया था. तेलंगाना सरकार किसानों को 'रायतु बंधू योजना' के तहत सालाना 8 हजार रुपये दे रही है. ओडिशा में पटनायक सरकार भी किसानों को 10 हजार सालाना दे रही है. पश्चिम बंगाल में ममता सरकार ने भी किसानों को 5 हजार देने की घोषणा कर रखी है. यहां तक कि बीजेपी की सत्ता वाली झारखंड की रघुवर दास सरकार भी पिछले साल से किसानों को 5000 रुपये सालाना दे रही है.

इसी राह पर आगे बढ़ते हुए मोदी सरकार ने भी किसानों की जेब को सीधे तौर पर भरने का ऐलान कर दिया. ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ योजना के जरिये 2 हेक्टेयर तक जमीन रखने वाले किसानों को तीन किश्तों में 6 हजार रुपये सालाना मिलेंगे. गणना दिसंबर 18 से ही होगी. यानी पहली किश्त चुनाव से पहले थमा ही दी जाएगी, ताकि बात सिर्फ दांव या वादे तक सीमित न मानी जाए. अब इस बाजीगरी का आंकड़ा ये कहता है कि 6 हजार सालाना, मतलब 500 रुपए महीना, रोजाना 17 रुपए से भी कम. अब सवाल ये उठता है कि एक दिन में 17 रुपए किसी की ज़िंदगी कैसे बदल पाएंगे?

किसानों के मामले में अगर आदर्श स्थिति भी मान लें कि अनाज-सब्जी वो खुद उगा रहा है, जानवर पालकर दूध भी घर में ही मिल रहा है, गेंहूं पीसकर आटा बनाने का काम भी घर की चक्की में हो रहा है तब भी नमक-तेल, मिर्च-मसाला, रसोई गैस वगैरह क्या 17 रुपए में इन सबका इंतज़ाम हो जाएगा? ध्यान रखने वाली बात ये है कि सरकार द्वारा मदद के तौर पर दी जा रही ये राशि पूरे परिवार के लिए है. एक परिवार में कम से कम 4 लोग तो होंगे ही. वैसे भी किसानों का संकट फसल की बर्बादी, फसल का वाजिब दाम न मिलना, दाम समय पर न मिलना है. ये आंकलन भी आदर्श स्थिति में हुआ है. आदर्श स्थिति कितने किसानों के पास है, ये भी सभी जानते हैं. ये वे सवाल हैं, जो अब किसानों को सोचना और समझना है. वैसे समझाने के लिए विपक्ष भी इसमें अपना योगदान देगा. यानी इस दांव की कामयाबी कठघरे में है.

मध्यम वर्ग और पेंशनर्स को लुभाने का दांव
मध्यम वर्ग सबसे बड़ा वोटबैंक भी होता है. इस वर्ग की सबसे बड़ी चाहत टैक्स को लेकर ही होती है. सरकार ने 5 लाख रुपए तक के आयकर में रिबेट दी है, यानी छूट दी है माफी नहीं. एक बड़ा तबका इससे राहत महसूस कर रहा है. हालांकि 5 लाख से ऊपर की आमदनी पर टैक्स की व्यवस्था पुरानी जैसी ही है. लेकिन ये राहत भी कम बड़ी नहीं है. यानी सरकार का ये दांव कुछ हद तक काम कर सकता है. पेंशनर्स को तो सीधा-सीधा फायदा होगा. 5 लाख से ऊपर की सालाना कमाई वालों को निवेश वगैरह के जरिये दायरा बढ़ता हुआ दिखाया जा रहा है. लेकिन सीधे-सीधे कोई राहत न मिलने से ऐसा तबका ज्यादा खुश नहीं है, यानी मध्यम वर्ग का भी एक बड़ा तबका पुरानी स्थिति में ही है।

मध्यम वर्ग को एक और राहत दी गई है. अभी तक एक घर बेचने पर टैक्स से बचने के लिए एक घर खरीदने पर राहत मिलती थी, लेकिन दूसरे घर पर नहीं मिलती थी. ऐसे में एक पिता के लिए अपने 2 बच्चों के लिए अलग-अलग घर का इंतजाम करना थोड़ा मुश्किल होता था. अब सरकार ने प्रॉपर्टी खरीद की ये राहत 2 घरों तक बढ़ा दी है. ये पेंशनर्स के लिए भी बड़ी राहत है. जिसका फायदा सरकार को मिल सकता है.

मध्यम वर्ग को एक राहत उनकी बचत पर भी मिली है. बैंक और डाकघर के बचत खातों में जमा पर मिलने वाले ब्‍याज पर टीडीएस की सीमा सालाना 10,000 रुपये से बढ़ाकर 40,000 रुपये की गई है. यानी अब 40 हजार रुपए सालाना ब्याज़ तक टैक्स नहीं देना होगा. ये ऐसी राहत है, जिसका क्रेडिट शायद सरकार को न मिल पाए, क्योंकि इस कटौती से लोग गुस्से में थे. आखिर ये जनता की ही बचत थी, इसे सरकारी मेहरबानी की नजर से जनता शायद ही देखे. पेंशनर्स और घरेलू महिलाएं ज़रूर सरकार को इस फ्रंट पर फुल क्रेडिट दे सकती हैं.

फौज का खर्च बढ़ाने और सैनिकों को लुभाने का दांव
हाऊ द जोश.. फिल्म उरी का ये स्लोगन इन दिनों खूब चर्चा में है. पीयूष गोयल ने बजट पेश करते हुए इस फिल्म का जिक्र भी किया और रक्षा बजट तीन लाख करोड़ से ऊपर ले जाने का एलान भी किया. दुर्गम क्षेत्रों में तैनात सैनिकों का भत्ता बढ़ाने के साथ ही ये ऐलान भी किया कि जरूरत पर बजट और बढ़ाया जाएगा, यानी सैनिकों में फुल जोश भरने का इंतजाम सरकार ने किया है. वैसे मोदी सरकार को लेकर फौजियों का नजरिया पहले से सकारात्मक है. ओआरओपी को लेकर भी सरकार ने यूपीए बनाम एनडीए का आंकड़ा पेश करते हुए अपनी पीठ थपथपाई है. यानी इस मोर्चे पर सरकार ने किला पुख्ता करने का बड़ा दांव चला है, जो कामयाब हो सकता है. हालांकि खुद संघ प्रमुख मोहन भागवत ये सवाल उठा चुके हैं कि युद्धकाल ना होने के बावजूद इतने सैनिक क्यों शहीद हो रहे हैं. यानी सवाल सिर्फ सैनिकों पर लुटाने का नहीं है, सवाल सैनिकों को बचाने का भी है. इस मुद्दे पर विपक्ष भी सरकार को घेरता रहा है, आगे भी घेरेगा. यहां विपक्ष, सरकार की बाजी पलट भी सकता है.

असंगठित क्षेत्र को लुभाने का दांव
मोदी सरकार ने एक ऐसे वर्ग को लुभाने की कोशिश भी की है. जो सिर्फ असंगठित ही नहीं, अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित रहता है. असंगठित श्रमिकों के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री श्रम-योगी मानधन वृहद पेंशन योजना शुरू करने का प्रस्‍ताव रखा. सरकार के टारगेट पर 10 करोड़ श्रमिक और कामगार हैं. लेकिन बड़ा सवाल है कि असंगठित क्षेत्र वोट देने के मामले में अपने समाज और जाति में बंटा होता है. इसलिए इस दांव का ज्यादा असर होगा ये मुश्किल ही है. मोदी सरकार के अंतरिम बजट में एलान और भी कई हैं, लेकिन बड़े वोटबैंक को अपने कब्जे में करने के ये कुछ बड़े दांव हैं. हर दांव के साथ जो बाजीगरी छिपी है उसे जनता कितनी गहराई से समझती है वही दांव की कामयाबी या नाकामयाबी को तय करेंगे. साथ में विपक्ष तो अपना फर्ज निभाएगा ही.

Source : जयंत अवस्थी

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