मोदी सरकार 2.0 का लगातार दूसरा बजट (Union Budget 2020) शनिवार को पेश होगा. बेपटरी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने कई चुनौतियां हैं. निर्मला सीतारमण के इस दूसरे बजट से कॉरपोरेट से लेकर लोगों को कई तरह की उम्मीदें हैं. मोदी सरकार के लिए जो सबसे बड़ी चुनौती है, वो ये कि इस बजट से आर्थिक चुनौती से निपटा जा सके और राजकोषीय घाटे के मोर्चे पर सही संतुलन बनाया जा सके. हालांकि, सरकार के पास भी एक ऐसा मौका है, जब वो आम लोगों को इस बात का भी एहसास करा सके कि डूबती अर्थव्यवस्था में तेजी लाने को वो लगातार प्रयास कर रही है. आज पेश होने वाले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से आम लोगों को क्या उम्मीद हैं और सरकार इनसे कैसे निपट सकती है, आइये इस बारे में जानते हैं...
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रेवेन्यू: मौजूदा अर्थव्यवस्था की हालात को देखते हुए जरूरी है कि लोगों के हाथों में पैसा और वो खर्च करना शुरू करें. सरकार के पास टैक्स में बढ़ोतरी कर रेवेन्यू का विकल्प नहीं है. ऐसे में सरकार के लिए जरूरी है कि वो प्राइवेटाइजेशन और विनिवेश के जरिए अपना रेवेन्यू बढ़ाए. इसके लिए सरकार एक्सचेंज ट्रेडेड फंड और इन्वेस्टमेंट होल्डिंग कंपनियों के माध्यम से फंड जुटा सकती है. होल्डिंग कंपनी के स्ट्रक्चर के जरिए सरकार के पास विकल्प होगा कि वो समय और वैल्यूएशन के हिसाब से फैसले ले. उम्मीद की जा रही है कि इस बजट में केंद्र सरकार विनिवेश के माध्यम फंड जुटाने का लक्ष्य बड़ा कर दे.
गवर्नमेंट फंडिंग: बजट की तर्ज पर एक बार फिर केंद्र सरकार अंतरराष्ट्रीय मार्केट के लिए सॉवरेन फंड से फंड जुटाने की घोषणा कर सकती है. हालांकि, इसका कॉस्ट घरेलू बाजार जैसा ही, लेकिन इससे एक बात सुनिश्चित हो सकेगी कि घरेलू बाजार में अधिक भीड़ न हो.
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स : 2018 के फरवरी में लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स को 14 साल बाद फिर से लागू किया गया था. इस टैक्स के लगने के बाद टैक्स कलेक्शन में कुछ खास इजाफा तो नहीं देखने को मिला, लेकिन लोगों में इसे लेकर काफी कनफ्यूजन रहा. साथ ही एसटीटी के पहले लगने के बाद दोहरे टैक्स की मार भी पड़ी है. उम्मीद की जा रही है कि आज के बजट में सरकार एलटीसीजी से राहत दे सकती है.
डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स : वर्तमान में डिविडेंट इनकम से होने वाली कमाई पर आंशिक रूप से तीन तरह का टैक्स लगता है. पहला कॉरपोरेट टैक्स, डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स और इनकम टैक्स. इसपर मांग की जा रही है कि सरकार इससे राहत दे, ताकि शेयर होल्डर्स को टैक्स पर टैक्स नहीं देना पड़े. साथ ही कंपनियों को डिविडेंड टैक्स से छूट मिलेगी तो वो भारत में अपने बिजनेस को बढ़ाने पर काम कर सकेंगी.
इनकम टैक्स सेक्शन 80C: इनकम टैक्स एक्ट का सेक्शन 80C ऐसा नियम है, जिसके तहत अधिकतर सैलरीड क्लास टैक्स छूट का लाभ प्राप्त करते हैं. पिछले साल सितंबर में कॉरपोरेट टैक्स में छूट के बाद अब लोगों को उम्मीद है कि केंद्र सरकार सेक्शन 80C के तहत टैक्स रियायत की सीमा बढ़ाए. ऐसा होता है कि देशभर में एक बड़े तबके को टैक्स बचत करने में मदद मिलेगी. साल 2014 में मोदी सरकार ने जब अपना पहला बजट पेश किया था तो इसके तहत टैक्स छूट की सीमा को एक लाख से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये किया गया था. इससे उम्मीद की जा रही है कि इस छूट को बढ़ाकर तीन लाख रुपये कर दिया जाएगा.
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इनकम टैक्स स्लैब: आम लोगों के बजट एक ऐसा समय होता है जब उन्हें उम्मीद है कि सरकार सैलरीड क्लास के लिए टैक्स छूट दे सकती है. इस साल यह उम्मीद दो प्रमुख कारणों से की जी रही है. पहला तो यह कि घरेलू बाजार में मांग में कमजोरी है और दूसरा यह कि पिछले साल ही सरकार कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की है. ऐसे में मांग और खपत को बढ़ाने के लिहजा से सरकार टैक्स स्लैब में बदलाव कर लोगों को बड़ी राहत दे सकती है.
रियल एस्टेट सेक्टर : पिछले 2 साल के दौरान रियल एस्टेट सेक्टर में मांग की कमी और खराब सेंटीमेंट से मार पड़ी है. इसको ध्यान में रखते हुए CREDAI समेत कई आयोग ने सरकार से इस सेक्टर को बूस्टर पैकेज की मांग की है. इससे पहले सभी बजट में किफायती घर मुहैया कराने पर सरकार का जोर रहा है. लोगों को उम्मीद है कि स्वरोजगार करने वाले लोगों को होम लोन पर ब्याज की सीमा को 2 लाख से बढ़ाकर तीन लाख रुपये कर दिया जाएगा. किफायती घर के मोर्चे पर सरकार इसके लिए योग्यात में बदलाव कर सकती है, ताकि ज्यादा लोगों को इस दायरे में लाया जाए. इसी प्रकार इस सेक्टर में तरलता की कमी को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि सरकार एक बार लोन को रिस्ट्रक्चर कर सकती है.
ऑटो सेक्टर: अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह सेक्टर काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. लेकिन, वित्त वर्ष 2019-20 में इसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा है. लिक्विटी संकट (Liquidity Crisis) के अलावा इस सेक्टर में पैसेंजर व्हीकल्स की सेल्स में भारी गिरावट आई है. ऐसे में वित्त मंत्री से उम्मीद है कि इस सेक्टर को रोड पर लाने के लिए कुछ ऐलान करें. इस सेक्टर को लेकर जो सबसे बड़ी मांग की जा रही है, वो ये कि जीएसटी दरों में कटौती की जाए. वर्तमान में, ऑटोमोबाइल्स 28 फीसदी जीएसटी के दायरे में आता है. इंडस्ट्री में मांग की जा रही है कि सरकार इसे घटाकर 18 फीसदी कर दे. इसके अलावा, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को बढ़ावा देने के लिए सरकार कुछ बड़े ऐलान कर सकती है.
छोटे कारोबारी : मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत केंद्र सरकार ने साल 2022 तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए कुछ लक्ष्य रखा है. केंद्र सरकार चाहती है कि 2022 तक इस भारतीय GDP में मैन्चुफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान 16 फीसदी से बढ़कर 25 प्रतिशत हो जाए. रोजगार के मोर्चे पर भी सरकार चाहती है कि 2022 तक यह आंकड़ा 10 करोड़ के पार पहुंचे. मौजूदा अर्थव्यवस्था ने इस सेक्टर को कुछ खास लाभ नहीं दिया है. ऐसे में सरकार इस सेक्टर में काम करने वाले छोटे कारोबारियों के लिए क्रेडिट उपलब्धता को बढ़ाने का प्रयास कर सकती है.
कृषि क्षेत्र के जरिये ग्रामीण इनकम में इजाफा: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कृषि सेक्टर काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इसके कई कारण है. इस सेक्टर में सबसे अधिक रोजगार, बड़ा साइज और जीडीपी में बड़ा योगदान शामिल है. ऐसे में खराब अर्थव्यवस्था के बीच सरकार इस सेक्टर पर विशेष जोर देना चाहेगी. सरकार की कोशिश होगी कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर वो ग्रामीण लोगों के जेब में पैसे बढ़ाए.
Source : News Nation Bureau