केंद्र की नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार ने किसानों को तोहफा देते हुए कोपरा (Copra) के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में भारी बढ़ोतरी कर दी है. सरकार ने कोपरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 375 रुपये की बढ़ोतरी की है. कोपरा का सरकारी भाव अब बढ़कर 10,335 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है.
पिसाई (मिलिंग) के लिए उपयुक्त उत्तम औसत गुणवत्ता (एफएक्यू) वाले कोपरे के एमएसपी में 375 रुपये की वृद्धि की गयी है, जो 2020 के 9960 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2021 सीजन के लिए 10335 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. गोल कोपरे के एमएसपी में भी 300 रुपये की वृद्धि की गयी है, जो 2020 के 10300 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2021 सीजन के लिए 10600 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है.
यह भी पढ़ें: Budget 2021: जानें किस वित्त मंत्री ने सबसे अधिक बार पेश किया है बजट
MSP यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस सरकार की तरफ से किसानों के फसलों के लिए गारंटी है. इसके तहत किसानों की फसल के लिए तय दाम की गारंटी मिलती है. सरकार मंडियों में बेहतर दाम नहीं मिलने पर MSP पर फसल खरीदती है. इसके अलावा MSP से दाम में उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर नहीं पड़ता है. साथ ही सरकार के द्वारा किसानों की लागत से डेढ़ गुना ज्यादा MSP तय करने की कोशिश होती है.
Cabinet Committee on Economic Affairs (CCEA) has approved MSP of copra at Rs 10,335 per quintal, an increase of Rs 375 over 2020 rates: Union Minister Prakash Javadekar pic.twitter.com/UORwMbvkvc
— ANI (@ANI) January 27, 2021
मौजूदा समय में कितनी फसलों के लिए है MSP
मौजूदा समय में 23 फसलों के लिए सरकार के द्वारा MSP तय किया जाता है. सात अनाज, पांच दलहन, सात तिलहन और चार कमर्शियल फसलों के लिए MSP तय किया जाता है. धान, गेहूं, मक्का, जौ, बाजरा, चना, तुअर, मूंग, उड़द और मसूर के लिए MSP तय की जाती है. सरसों, सोयाबीन, सूरजमूखी, गन्ना, कपास और जूट के लिए भी MSP को तय किया जाता है. सरकारों ने समय के साथ MSP का दायरा बढ़ाने की कोशिश की है.
कौन तय करता है MSP?
भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का संलग्न कार्यालय CACP यानी कृषि लागत एवं मूल्य आयोग MSP तय करती है. जनवरी 1965 में CACP अस्तित्व में आया था. CACP के द्वारा फसलों के लिए तय किए जाने वाली MSP के अलावा गन्ने का MSP गन्ना आयोग तय करता है. CACP खेती की लागत के आधार पर फसलों की न्यूनतम कीमत तय करके अपने सुझाव सरकार के पास भेज देता है. सरकार इन सुझावों पर अध्ययन करने के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान कर देती है.
यह भी पढ़ें: सरल पेंशन योजना क्या है, जानिए कब से हो रही है शुरू और क्या हैं इसके फायदे
दरअसल, हर साल बुवाई से पहले फसलों की MSP तय हो जाती है. हर खरीफ और रबी सीजन के लिए MSP तय होता है. उसके बाद सरकारी एजेंसियों के जरिए MSP पर खरीद की जाती है. सरकार MSP पर अनाज खरीदकर बफर स्टॉक बनाती है. सरकारी खरीद के बाद FCI और नैफेड के पास अनाज जमा किया जाता है. सरकार जमा किए गए अनाज का इस्तेमाल PDS के लिए करती है. वहीं कीमतों में ज्यादा तेजी आने पर सरकार बफर स्टॉक के जरिए बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाती है.
MSP तय करने के प्रमुख कारक
- डिमांड और सप्लाई
- उत्पादन लागत
- घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्राइस ट्रेंड
- इंटर-क्रॉप प्राइस पेरिटी
- कृषि एवं गैर-कृषि के बीच व्यापार की शर्तें
- उपभोक्ताओं पर एमएसपी का संभावित प्रभाव
MSP की कैसे हुई शुरुआत?
गौरतलब है कि 1966-67 में पहली बार गेहूं के लिए MSP का ऐलान किया गया था. शुरुआती वर्षों में सिर्फ गेहूं की फसल के लिए MSP तय की गई थी. हालांकि बाद में दूसरी फसलों को बढ़ावा देने के लिए MSP का दायरा बढ़ाया गया.
एमएसपी का फायदा (Benefits Of MSP)
एमएसपी तय होने से किसानों के लिए सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि मान लीजिए फसल का भाव अगर नीचे आ जाता है तो भी उसे यह उम्मीद रहती है कि वह अपनी फसल को MSP पर सरकार को बेच सकता है.
यह भी पढ़ें: RBI ने बैंकों को दिया ये आदेश, लाखों पेंशनभोगियों को मिलेगी बड़ी राहत
MSP सिस्टम की क्या हैं दिक्कतें
MSP सिस्टम की कुछ दिक्कतें भी हैं. किसानों के फसलों की लागत तय कर पाना बड़ा मुश्किल काम है. यही नहीं छोटे किसान MSP पर अपनी फसल भी नहीं बेच पाते हैं. बिचौलिये किसान से खरीदकर MSP का फायदा उठाते हैं. इसके साथ ही मौजूदा समय में कई फसलें अभी भी MSP के दायरे से बाहर हैं, जिसकी वजह से किसानों को नुकसान हो रहा है.
MSP तय करने का फार्मूला
मोदी सरकार पहली बार जब सत्ता में आई थी तब उसने फसल के लिए MSP तय करने के लिए नए फॉर्मूला लाने की पहल की थी. उसके तहत लागत का डेढ़ गुना एमएसपी तय करने की बात कही गई थी. बता दें कि 2004 में कृषि सुधारों के लिए स्वामीनाथन आयोग बना था और उस आयोग ने एमएसपी तय करने के कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे. आयोग ने सिफारिश की थी कि एमएसपी औसत उत्पादन लागत से कम से कम 50 फीसदी अधिक होना चाहिए.