किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी (Doubling Farmers Income) करने के लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश में जुटी केंद्र की नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार के लिए किसानों को उनकी फसलों का वाजिब व लाभकारी दाम दिलाना एक बड़ी चुनौती है. आमतौर पर यह देखा गया है कि किसान अच्छा भाव मिलने की उम्मीदों से जिन फसलों की खेती में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं और उनकी पैदावार बढ़ती है, उन फसलों का उन्हें उचित भाव नहीं मिल पाता है.
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मिसाल के तौर पर इस साल खरीफ सीजन की मुख्य नकदी फसल कपास को लिया जा सकता है. कपास की नई फसल की मंडियों में आवक शुरू हो चुकी है और सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से औसतन 400-500 रुपये कम भाव पर कपास की फसल मंडियों में बिक रही है, लेकिन जिन फसलों की पैदावार कम होती है, वह एमएसपी से ऊपर के भाव बिकती है, इसका एक उदाहरण मक्का है जिसका किसानों को पिछले साल के मुकाबले तकरीबन दोगुना दाम मिला.
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सिर्फ छह फीसदी किसानों को मिलता है सरकारी खरीद का लाभ
ऐसे में यह गंभीर विषय है कि पैदावार बढ़ने पर किसानों को फसलों का लाभकारी मूल्य कैसे मिले, जबकि केंद्र सरकार लगातार प्रमुख फसलों के एमएसपी में वृद्धि करती रही है. कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि यह तभी संभव होगा जब सरकार देशभर में एमएसपी पर फसलों की खरीद सुनिश्चित करेगी, मगर इसके लिए समुचित बुनियादी सुविधा सभी राज्यों में उपलब्ध नहीं है. कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा के मुताबिक शांताकुमार समिति की रिपोर्ट बताती है कि देशभर में सिर्फ छह फीसदी किसानों को उनकी उपज की सरकारी खरीद का लाभ मिलता है.
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गेहूं, धान को छोड़कर अन्य फसलों की सरकारी खरीद काफी कम
देविंदर शर्मा कहते हैं कि गेहूं और धान के छोड़कर अन्य फसलों की सरकारी खरीद बहुत कम होती है. उन्होंने बताया कि देशभर में गेहूं और धान की सरकारी खरीद तकरीबन 30 फीसदी होती है. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल धान और गेहू का उत्पादन क्रमश: 11.64 करोड़ टन और 10.21 करोड़ टन था, जबकि एफसीआई के आंकड़ों के अनुसार, सरकार की तरफ से धान की खरीददारी 4.43 करोड़ टन, और गेहूं की खरीदारी 3.41 करोड़ टन हुई थी.
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यह पूछे जाने पर कि क्या किसानों को फसलों का वाजिब दाम दिलाना सरकार के लिए चुनौती बन गई? उन्होंने कहा कि बेशक यह एक चुनौती है, क्योंकि जब तक किसानों को फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलेगा तब तक उनकी आमदनी नहीं बढ़ेगी. उन्होंने बताया कि इस समय देश में 7,600 एपीएमसी (कृषि उत्पाद मार्केटिंग कमेटी) मंडियां हैं, जबकि पांच किलोमीटर के दायरे में एक मंडी की व्यवस्था करने के लिए करीब 42,000 एपीएमसी मंडियों की जरूरत है.
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कृषि व्यापार व कानून विशेषज्ञ विजय सरदाना का कहना है कि एपीएमसी मंडियों की व्यवस्था दुरुस्त करने के साथ-साथ उसमें किसानों की भागीदारी बढ़ानी होगी तभी उनको फसलों का वाजिब भाव मिल पाएगा. उन्होंने कहा कि इससे व्यापारियों की मनमानी समाप्त होगी और किसानों को एमएसपी का विकल्प मिलेगा, क्योंकि एमएसपी का फायदा सभी किसानों को नहीं मिल पा रहा है. सरदाना के अनुसार, एमएसपी का फायदा देश के 10 फीसदी किसानों को भी नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि फसलों की सरकारी खरीद का फायदा सभी किसानों को नहीं मिलता है, जबकि इससे बाजार व्यवस्था समाप्त हो रही है, लिहाजा बाजार व्यवस्था दुरुस्त करने पर ध्यान देने की जरूरत है.
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हालांकि कृषि मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि अगर एमएसपी पर सरकारी खरीद नहीं होगी तो किसानों को फसलों की तैयारी के दौरान जो भाव मिलता है वह भी नहीं मिल पाएगा. एपीडा के एक अधिकारी ने बताया कि देश में फसलों का एमएसपी ज्यादा होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पाद प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाता है, जिससे निर्यात पर असर पड़ता है. प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. अरुण कुमार का भी कहना है कि कृषि पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम दिलाना जरूरी है, जिससे उनकी आय बढ़ेगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूती मिलेगी.