किसानों के लिए सफेद सोना (White Gold) कहलाने वाली फसल कपास (Kapas) इस बार उनके लिए सफेद सोना साबित नहीं होने जा रही है, क्योंकि किसान सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम भाव पर कपास बेचने को मजबूर हैं. किसानों को कपास का भाव इस समय 3,300-5,200 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है, जबकि केंद्र सरकार ने चालू कपास सीजन 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए लंबे रेशे वाले कपास का एमएसपी 5,550 रुपये प्रति क्विंटल और मध्यम रेशे के कपास का 5,255 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है.
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मंडियों में अबतक नई कपास की आवक 12-15 गांठ
हालांकि सरकारी एजेंसी भारतीय कपास निगम लिमिटेड (सीसीआई) ने एक अक्टूबर से सीजन की शुरुआत के साथ ही किसानों से एमएसपी पर कपास खरीदने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन अब तक सीसीआई की खरीद 15,000 गांठ (एक गांठ में 170 किलो) भी नहीं हो पाई है, जबकि मंडियों में कपास की नई फसल की आवक 12-15 लाख गांठ हो चुकी है. सरकारी खरीद सुस्त होने के संबंध में पूछे जाने पर सीसीआई के एक अधिकारी ने बताया कि कपास की नई फसल में नमी ज्यादा होने के कारण खरीद कम हो रही है. अब तक कितनी खरीद हो पाई है, इस संबंध में हालांकि उन्होंने सही आंकड़ा नहीं बताया, लेकिन एक अनुमान के तौर पर बताया कि 15,000 गांठ से कम ही खरीद हो पाई है.
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नई कपास में 12-30 फीसदी तक की नमी
सीसीआई 12 फीसदी से ज्यादा नमी होने पर कपास नहीं खरीदती है, जबकि बाजार सूत्रों ने बताया कि इस समय जो कपास की आवक हो रही है उसमें 12-30 फीसदी तक नमी पाई जाती है. मुंबई के कारोबारी अरुण शेखसरिया ने भी बताया कि सीसीआई ने नमी का जो मानक तय किया, उससे अधिक नमी होने के कारण कपास की खरीद सुस्त है। उन्होंने कहा कि कपास उत्पादक क्षेत्रों में बारिश होने के कारण नई फसल में नमी ज्यादा है, जिसके कारण सीसीआई की खरीद कम हो रही है, हालांकि मंडियों में जो फसल आ रही है वह बिक रही है.
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शेखसरिया ने बताया कि बारिश के कारण कपास की आवक पिछले साल से कम हो रही है, पिछले साल अक्टूबर तक 26-28 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी थी, मगर इस साल अब तक 12-15 लाख गांठ ही हुई है. उन्होंने कहा कि बारिश के कारण फसल खराब भी हुई है और क्वालिटी खराब हो गई है.
उन्होंने कहा कि क्वालिटी खराब होने से देश से कॉटन निर्यात पर भी असर पड़ सकता है. मुंबई के कॉटन बाजार विश्लेषक गिरीश काबरा ने बताया कि कारोबारी अभी जो कपास खरीद रहे हैं, उसमें ज्यादातर सौदे काफी पहले हो चुके थे. उन्होंने कहा कि त्योहारी सीजन में पैसों की जरूरत होने के कारण किसान कम भाव पर कपास बेचने को मजबूर हैं.