कैस्टरसीड (Castorseed) वायदा कारोबार को लेकर नेशनल कमोडिटी एक्सचेंज (NCDEX) की साख पर उठ सवाल उठ रहा है. एनसीडीईएक्स पर बीते 15 दिनों में कैस्टरसीड के भाव में 28 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है. इसके लिए कारोबारी एक्सचेंज (Exchange) को जिम्मेदार मानते हैं. कारोबारियों का कहना है कि एक्सचेंज ने बार-बार नियम बदले, मार्जिन लगाए और फिर हटाए, जिससे बाजार में घबराहट की स्थिति पैदा हो गई, जिससे भाव टूटे और इसका असर हाजिर कारोबार पर भी पड़ा, इसका कारोबारियों और किसानों को भारी नुकसान हुआ है.
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500-600 करोड़ रुपये का नुकसान
कारोबारियों का कहना है कि इन सब स्थितियों की वजह से आकलन के अनुसार करीब 500-600 करोड़ रुपये का नुकसान है. कारोबारियों ने एक्सचेंज के अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप लगाया है. इस पर सफाई देते हुए एक्सचेंज के प्रबंध निदेशक (एमडी) और प्रमुख कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) विजय कुमार वेंकटरमण ने कहा कि उन्होंने जो भी कदम उठाए हैं वे सभी सेबी के दिशानिर्देशों के अनुरूप हैं. विजय कुमार का कहना है कि क्लाइंट्स के डिफॉल्टर होने के कारण एक्सचेंज को कारोबार में गड़बड़ी रोकने के लिए नियम बदलने पड़े जोकि बाजार विनियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के दिशानिर्देश के अनुरूप हैं.
उधर, जोधपुर के कारोबारी दिनेश कुमार ने कहा कि बीते कारोबारी सत्र में शुक्रवार को हालांकि कैस्टरसीड के वायदे में सर्किट खुले, लेकिन इससे पहले लगातार सात बार लोअर सर्किट लगे हैं. उन्होंने कहा कि एक्सचेंज द्वारा बार-बार नियम बदलने और मार्जिन लगाने व हटाने से घबराहट पैदा हुई, जिससे भाव टूटे. उन्होंने कहा कैस्टरसीड की कीमतों में भारी गिरावट आने से किसानों और कारोबारियों को भारी नुकसान हुआ, क्योंकि उनके पास जो माल पड़ा है उसका भाव काफी कम हो गया.
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24 सितंबर को 5 फीसदी अतिरिक्त मार्जिन लगा था
एनसीडीएक्स ने 24 सितंबर को जारी एक सर्कलुर में कैस्टरसीड के वायदे पर पांच फीसदी का अतिरिक्त मार्जिन (लांग साइड एवं शॉर्ट साइड) लगा दिया था और प्री-एक्सपायरी मार्जिन दो फीसदी से बढ़ाकर तीन फीसदी कर दिया था, लेकिन 26 सितंबर के सर्कुलर में पांच फीसदी मार्जिन को वापस ले लिया. मार्जिन लगाने और हटाने को लेकर पूछे गए सवाल पर विजय कुमार ने कहा कि ये कदम उचित थे क्योंकि क्लाइंट व ट्रेडर्स अपनी क्षमता से अधिक खरीदारी कर चुके थे और वे डिफॉल्टर होने लगे थे, इसलिए उनको निकालना जरूरी था. उन्होंने कहा कि मार्जिन लगाने और हटाने के फैसले एक्सचेंज के नियमों के तहत लिए जाते हैं जिसका मकसद बाजार में हो रही गड़बड़ी को रोकना है.
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उनसे जब पूछा गया कि क्या कार्टिलाइजेशन के आरोप लगने और बाजार को तोड़ने के जो आरोप लग रहे हैं वह उसकी जांच करवाएंगे तो उन्होंने कहा कि एक्सचेंज हर प्रकार की जांच करवाता है और उसकी एक प्रक्रिया होती है जो हमेशा चलती रहती है. एनसीडीएक्स ने 26 सितंबर के सर्कलुर में अक्टूबर अनुबंध में 11 सितंबर से शुरू होने वाले स्टैगर्ड डिलीवरी की अवधि को बढ़ाकर तीन सितंबर कर दिया. इसे भी विजय कुमार ने उचित कदम बताया और कहा कि कारोबार को दुरुस्त करने के लिए यह कदम उठाना जरूरी था. एक्सचेंज ने इसके बाद 27 सितंबर को जारी सर्कुलर में कैस्टरसीड के अनुबंधों पर शॉर्ट साइड में 20 फीसदी स्पेशल मार्जिन लगा दिया.
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बकौल विजय कुमार, एक्सचेंज द्वारा उठाए गए कदमों से कारोबार जो ठप पड़ गया था वह शुक्रवार फिर से चालू हुआ. उन्होंने बताया कि कैस्टरसीड का स्टॉक पोजीशन तीन लाख टन था जो अब घटकर 1.25 लाख टन बच गया है. एक्सचेंज द्वारा लगातार किए गए नियमों में बदलाव पर दिनेश कुमार ने कहा कि बाजार में घबराहट की स्थिति पैदा करने में एक्सचेंज की ही भूमिका रही है. उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि बड़े खिलाड़ियों के कार्टिलाइजेशन यानी सांठगांठ से ऐसा हुआ है.
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कमोडिटी बाजार विश्लेषक और एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट (करेंसी व एनर्जी रिसर्च) अनुज गुप्ता ने भी इससे पहले कहा था कि कैस्टरसीड वायदे को तोड़ने के पीछे कार्टिलाइजेशन भी एक कारण है. कैस्टरसीड का अक्टूबर वायदा अनुबंध शुक्रवार को 166 रुपये यानी 3.76 फीसदी की गिरावट के साथ 4,288 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ. इससे पहले 19 सिंतबर को कैस्टरसीड का अक्टूबर अनुबंध 5,966 रुपये पर बंद हुआ था। इस प्रकार कैस्टरसीड के भाव में 1,678 रुपये यानी 28.12 फीसदी की गिरावट आई.
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पिछले साल कैस्टरसीड का रकबा 7 फीसदी अधिक
उन्होंने कहा कि इस साल कैस्टरसीड का रकबा पिछले साल से अधिक है और मानसून सीजन के आखिरी दौर में देश के सबसे बड़े कैस्टरसीड उत्पादक राज्य गुजरात में अच्छी बारिश होने से बंपर फसल होने की संभावना जताई जा रही है. यह भी एक कारण है कि बिकवाली का दबाव बढ़ा है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में कैस्टरसीड का रकबा इस साल 9.36 लाख हेक्टेयर है जोकि पिछले साल के रकबे 8.77 लाख हेक्टेयर से सात फीसदी अधिक है.