6 Years Of Demonetisation: 8 नवम्बर साल 2016 का दिन भारतीय इतिहास में नोटबंदी के नाम रहा. ठीक 6 साल पहले रात 8 बजे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐलान किया जिसके ठीक 4 घंटे बाद लोगों के वित्तिय लेनदेन में बहुत बड़ा बदलाव आया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया था कि देश में 1000 और 500 रुपये के पुराने नोटों को अमान्य कर दिया जाएगा. 1000 का नया नोट तो बाजार में आया नहीं इसकी जगह 500 रुपये, 200 रुपये और 2000 रुपये के नोट प्रचलन में आए. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये फैसला देश भर के लोगों को एक बड़ा झटका था, लेकिन सरकार के उद्देश्य के आगे धीरे- धीरे इस फैसले में लोगों ने भी अपनी सहभागिता भी दर्ज करवा ली. भ्रष्टाचार पर रोक लगाने और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नई नीति को लाया गया था. वहीं ठीक 6 साल बाद नोटबंदी के बाद भारत की एक अलग तस्वीर रिपोर्ट्स में सामने निकल कर आई. आइए जानते हैं क्या हुआ बदलाव
डिजिटल तो जाएंगे पर नकदी से नहीं छूटेगा मोह
सरकार का उद्देश्य था कि देश में लोग डिजिटल पेमेंट को लेन- देन में अपनाएं. लोगों की निर्भरता नकदी पर कम हो. वहीं काले धन पर रोक लगाना भी सरकार के उद्देश्यों में था. 6 साल बाद भारत की तस्वीर देखते हैं तो पाते हैं कि साल 2017 के बाद से लोगों की नकदी को रखने में पहले जैसी ही दिलचस्पी बढ़ने लगी. लोगों ने डिटिजल माध्यम में लेन- देन तो शुरु किया पर नकदी रखना यानि कैश होल्डिंग साल दर साल बढ़ता ही गया. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नए फैसले के बाद जहां नवम्बर 2016 में 17.6 लाख करोड़ रुपये की कैश होल्डिंग तो वहीं 21 अक्टूबर 2022 को यह बढ़कर 30.9 लाख करोड़ हो गई.
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डिटिजल हुए भारतीय
यही नहीं भारतीयो के डिटिजल होने को लेकर भी यूपीआई के बेहद दिलचस्प आंकड़े सामने आए हैं. स्मार्टफोन और इंटनेट की उपलब्धता ने बहुत से लोगों को डिजिटल बनाया. लोगों ने लेन- देन की प्रक्रिया में यूपीआई को भुगतान का नया तरीका बनाया. जहां साल 2018-19 में केवल 38 फीसदी लोग डिटिजल भुगतान करते थे वहीं साल 2021-22 में यही आंकड़ा बढ़कर 81 फीसदी हो गया.
HIGHLIGHTS
- साल दर साल बढ़ी देश में कैश होल्डिंग
- डिटिजल भी हो रहे हैं वर्तमान में भारतीय
Source : News Nation Bureau