आर्थिक सर्वेक्षण में मोदी सरकार ने माना, 7.5 प्रतिशत जीडीपी दर हासिल करना मुश्किल

वित्त मंत्रालय द्वारा सदन पटल पर रखे गए आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 भाग दो में कहा गया है, 'अर्थव्यवस्था ने अभी तक अपनी गति हासिल नहीं की है और इसमें अभी काफी संभावनाएं हैं।'

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Jeevan Prakash
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आर्थिक सर्वेक्षण में मोदी सरकार ने माना, 7.5 प्रतिशत जीडीपी दर हासिल करना मुश्किल

7.5 प्रतिशत जीडीपी दर हासिल करना मुश्किल (फाइल फोटो)

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चालू वित्त वर्ष में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 6.75 फीसदी से 7.5 फीसदी तक होने का अनुमान लगाया गया है। सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण-दो में शुक्रवार को यह जानकारी दी गई।

वित्त मंत्रालय द्वारा सदन पटल पर रखे गए आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 भाग दो में कहा गया है, 'अर्थव्यवस्था ने अभी तक अपनी गति हासिल नहीं की है और इसमें अभी काफी संभावनाएं हैं।'

मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविन्द सुब्रह्मण्यम द्वारा लिखित इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि कृषि राजस्व और गैर-खाद्यान्न कीमतों, कृषि ऋण छूट, राजकोषीय समेकन और बिजली व दूरसंचार क्षेत्रों की लाभप्रदता में आई कमी जैसे कारकों के कारण अपस्फीति की प्रवृत्ति पैदा हुई है।

सर्वेक्षण में कहा गया है, 'इनमें संकटग्रस्त कृषि राजस्व, गैर-खाद्यान्न कीमतों में गिरावट, कृषि ऋण छूट, राजकोषीय समेकन और बिजली व दूरसंचार क्षेत्रों की लाभप्रदता में आई कमी जैसे कारकों के कारण दोहरी-बैलेंस शीट (टीबीएस) समस्या को और बढ़ा रही है।'

नवंबर में की गई नोटबंदी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में ठहराव आ गया और इस साल मार्च में खत्म हुई चौथी तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में तेज गिरावट दर्ज की गई और यह सात फीसदी से घटकर 6.1 फीसदी पर आ गया, जबकि समूचे वित्त वर्ष 2016-17 में भी तदनुसार गिरावट दर्ज की गई।

नोटबंदी के कारण प्रचलन में जारी नोट में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई। सर्वेक्षण में कहा गया है कि 31 मार्च को खत्म हुए पिछले वित्त वर्ष में प्रचलन में जारी नोट में 19.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि रिजर्व नकदी में 12.9 फीसदी की गिरावट रही।

सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि बैंकों से ऋण उठाव में भी लगातार गिरावट दर्ज की गई।

सर्वेक्षण में विकास दर धीमा पड़ने तथा अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में ऋणग्रस्तता में तेजी को लेकर चिंता व्यक्त की गई है, जिससे बैंकों की संपत्तियों की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि बैंकों के फंसे हुए कर्जे (गैर निष्पादित परिसंपत्तियां या एनपीए) साल 2016 के सितंबर में 9.2 फीसदी के अनुपात में थे, जो साल 2017 के मार्च में बढ़कर 9.5 फीसदी के अनुपात तक आ गए हैं।

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सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि 2018 के मार्च तक खुदरा मुद्रास्फीति भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मध्यम अवधि के लक्ष्य चार फीसदी से नीचे रहने का अनुमान है। जून में खुदरा महंगाई पिछले पांच सालों के सबसे निचले स्तर 1.54 फीसदी पर दर्ज की गई थी।

इसलिए आरबीआई द्वारा प्रमुख ब्याज दरों में आगे भी कमी करने की उम्मीद जताई गई है। आरबीआई ने इसी महीने प्रमुख ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की कटौती की थी, जो पिछले साल अक्टूबर के बाद पहली बार की गई कटौती थी।

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Source : IANS

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