वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बृहस्पतिवार को सरकार तथा रिजर्व बैंक के बीच मतभेद की बात स्वीकार की है. उन्होंने कहा कि दो-तीन मुद्दे हैं जहां रिजर्व बैंक के साथ केंद्र सरकार के मतभेद है. हालांकि, उन्होंने सवाल उठाया कि रिजर्व बैंक के कामकाज के तरीके पर चर्चा करने मात्र से ही इसे कैसे एक संस्थान को 'नष्ट' करना कहा जा सकता है. उर्जित पटेल के इस्तीफे की स्थिति पैदा करने को लेकर राजनीतिक आलोचनाओं का सामना कर रहे जेटली ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी समेत पूर्व सरकारों के ऐेसे उदाहरण दिये जिसमें आरबीआई के तत्कालीन गवर्नरों को इस्तीफा देने तक को कहा गया.
टाइम्स नेटवर्क के इंडिया इकोनोमिक कान्क्लेव में जेटली ने कहा कि आरबीआई के साथ अर्थव्यवस्था में कर्ज प्रवाह तथा नकदी समर्थन समेत कुछ मुद्दों को लेकर मतभेद है और सरकार ने अपनी चिंता बताने के लिये बातचीत शुरू की थी.
उन्होंने सवाल उठाते हुये कहा, 'एक प्रमुख स्वतंत्र और स्वायत्त संस्थान के साथ इस बारे में चर्चा करना कि यह आपके (आरबीआई) काम का हिस्सा है. यह अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण क्षेत्र है और इसे आपको अवश्य देखना चाहिये, आखिर ऐसा करना किस प्रकार से एक संस्थान को खत्म करना कहा जा सकता है?'
रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने आरबीआई कानून की धारा 7 का पहली बार उपयोग करते हुए केंद्रीय बैंक के साथ बातचीत शुरू की थी. इस धारा के तहत केंद्र सरकार आरबीआई को जनहित में कदम उठाने के लिये कह सकती है. इससे विभिन्न तबकों में चिंता बढ़ी. इसके अलावा आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य का आरबीआई की स्वायत्तता के साथ समझौता करने की बात कहने से भी चिंता को बल मिला.
हालांकि, जेटली ने यह नहीं बताया कि बातचीत कैसे शुरू की गयी थी. आरबीआई के साथ चर्चा के संदर्भ में जेटली ने कहा, 'हम संप्रभु सरकार हैं, जहां तक अर्थव्यवस्था के प्रबंधन का सवाल है, हम सबसे महत्वपूर्ण पक्ष हैं.'
उन्होंने जोर देकर कहा कि जहां तक ऋण और नकदी का सवाल है, आरबीआई की यह जिम्मेदारी है. 'हम उनके कार्यों को नहीं ले रहे. सरकार ने केवल उस उपाय के तहत चर्चा शुरू की जो चर्चा पर जोर देता है.'
जेटली ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने आरबीआई को पत्र लिखकर कहा था कि आर्थिक नीतियां निर्वाचित सरकार निर्धारित करती हैं जबकि मौद्रिक नीति को लेकर आरबीआई की स्वायत्तता है. वित्त मंत्री ने जोर देकर कहा कि आरबीआई की नीतियों को आर्थिक नीतियों के अनुरूप भी बनाये जाने की जरूरत है.
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बता दें कि बुधवार को आरबीआई के नवनियुक्त गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि 'सरकार केवल एक हितधारक नहीं है, बल्कि मेरा मतलब है कि सरकार अर्थव्यवस्था चलाती है, देश चलाती है और बड़े नीतिगत निर्णयों को लेती है.'
उन्होंने कहा, 'मैं इसमें नहीं पड़ने वाला कि क्या मु़द्दे रहे या सरकार व आरबीआई के बीच क्या समस्या थी, लेकिन सभी संस्थानों की अपनी पेशेवर संप्रभुता होनी चाहिए और इसकी पेशेवर स्वायत्तता बनाए रखनी चाहिए. यहीं पर, सभी संस्थानों को भी जवाबदेही के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए.'
उन्होंने कहा, 'सरकार और आरबीआई के बीच स्वतंत्र, निष्पक्ष, उद्देश्यपूर्ण और काफी मुक्त वार्ता होनी चाहिए. मैं महसूस करता हूं कि सभी मुद्दे, भले ही वे विरोधाभाषी हों, बातचीत से सुलझाए जा सकते हैं.'
आरबीआई के 25वें गवर्नर के रूप में कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा कि आधुनिक समय में निर्णय लेने की जटिलता को देखते हुए केंद्रीय बैंक के कामकाज के लिए हितधारकों से परामर्श करना आवश्यक हो गया है और इसी प्रक्रिया के तहत वह गुरुवार को मुंबई स्थित सरकारी बैंकों के प्रमुखों से मुलाकात करेंगे.
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उन्होंने आश्वस्त किया, "आरबीआई एक महान संस्था है और मैं इसकी स्वायत्तता, पहचान और मूल्यों को बरकरार रखने का सर्वश्रेष्ठ प्रयास करूंगा. इस महान संस्था की स्वायत्तता, संप्रभुता और विश्वसनीयता बरकरार रहना बहुत महत्वपूर्ण है और यह बरकरार रहेगा.'
Source : News Nation Bureau