देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम (Arvind Subramanian) ने मंगलवार को उस अवधि के दौरान के देश के जीडीपी आंकड़े पर सवाल उठाए हैं, जिस दौरान वह कुछ वर्षो तक सरकार के हिस्सा थे. सुब्रह्मण्यम ने चार आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किए थे, और एक बार भी उन्होंने इस मुद्दे को नहीं उठाया था.
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2017-18 के लिए सकल जीडीपी वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत
सरकारी आंकड़े के अनुसार, 2017-18 के लिए सकल जीडीपी वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत है. इस वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में भारत ने वृद्धि दर में चीन को पछाड़ दिया. भारतीय अर्थव्यवस्था ने पूर्व के वित्त वर्ष 2016-17 में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कराई थी. वित्त वर्ष 2015-16 में भारत की वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत थी, जो पांच साल में सबसे तेज थी. वित्त वर्ष 2014-15 में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत थी.
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तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली का किया था बचाव
इन सभी वर्षो के दौरान अरविंद सुब्रह्मण्यम ने इन जीडीपी आंकड़ों का तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली के साथ ही हर बार बचाव, समर्थन किया था और गर्व जताया था. उन्होंने आंकड़े तय करने के तरीके पर, संख्या पर या इन आंकड़ों के पीछे के कारणों पर एक शब्द नहीं बोला था. सुब्रह्मण्यम अचानक निजी कारणों का हवाला देते हुए जून 2018 में सरकार से अलग होकर शिक्षण में लौट गए. उन्होंने 16 अक्टूबर, 2014 को तीन साल के लिए सीईए का कार्यभार संभाला था. 2017 में उनका कार्यकाल एक साल बढ़ा दिया गया.
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जीडीपी वृद्धि दर को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया
पूर्व सीईए ने 12 जून, 2019 को कहा कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2011-12 और 2016-17 में बढ़ा-चढ़ा कर पेश की गई थी और उन्होंने जोर देकर कहा कि इस बात की संभावना है कि वृद्धि के आंकड़ों को काफी बढ़ाकर पेश किया गया, जबकि 2011-12 और 2016-17 के दौरान वास्तविक जीडीपी दर सात प्रतिशत के बदले 4.5 प्रतिशत थी. सुब्रह्मण्यम ने एक शोध-पत्र में सरकार के आधिकारिक जीडीपी वृद्धि दर के आंकड़ों पर सवाल उठाया है, और कहा है कि देश की विकास दर 2011-12 और 1016-17 के दौरान आधिकारिक आंकड़े में दिखाए गए सात प्रतिशत के औसत के बदले 4.5 प्रतिशत रही होगी.
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वित्त वर्ष 2014-15 में जीडीपी वृद्धि दर संप्रग द्वितीय और राजग प्रथम, दोनों सरकारों से संबंधित रही. शोध-पत्र में सुब्रह्मण्यम ने 2001 और 2017 के दौरान जीडीपी आंकड़ों के साथ अंतरसंबंध जांचने के लिए 17 वास्तविक संकेतकों जैसे कि वाहन बिक्री, औद्योगिक उत्पादन, क्रेडिट ग्रोथ और निर्यात व आयात का इस्तेमाल किया. गौरतलब है कि पूर्व सीईए ने 30 नवंबर, 2018 को अपनी किताब 'ऑफ काउंसेल' में कहा था कि नोटबंदी का कदम क्रूर था. उनकी यह बात उनके सीईए रहते हुए कही गई बात से बिल्कुल उलट थी.