Coronavirus (Covid-19): विश्व बैंक (World Bank) ने संकेत दिया कि वह भारत के लिए आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) के अनुमान को और घटा सकता है. उसने यह भी कहा कि कोविड-19 (Coronavirus Epidemic) संकट से बाहर आने के लिये स्वास्थ्य, श्रम, भूमि, कौशल और वित्त जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधारों को आगे बढ़ाने की जरूरत है. विश्व बैंक ने मई में अनुमान जताया था कि भारत की अर्थव्यवस्था में वित्त वर्ष 2020-21 में 3.2 प्रतिशत की गिरावट आने की आशंका है और अगले वित्त वर्ष में धीरे-धीरे यह पटरी पर आ सकती है.
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भारत का राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष में बढ़कर 6.6 फीसदी होने का अनुमान
बहुपक्षीय संस्थान ने भारत के बारे में अद्यतन रिपोर्ट में कहा कि हाल के सप्ताह में चुनौतियां उभरी हैं. इसका निकट भविष्य में संभावनाओं पर असर पड़ सकता है. इन जोखिमों में वायरस का लगातार फैलना, वैश्विक परिदृश्य में और गिरावट तथा वित्तीय क्षेत्र पर अतिरिक्त दबाव का अनुमान शामिल हैं. उसने कहा कि इन चीजों को ध्यान में रखते हुए, संशोधित परिदृश्य में तीव्र गिरावट का अनुमान रखा जा सकता है. संशोधित परिदृश्य अक्टूबर, 2020 में उपलब्ध होगा. विश्वबैंक का अनुमान है कि भारत का राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष में बढ़कर 6.6 प्रतिशत हो सकता है और बाद के वर्ष में 5.5 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बना रह सकता है.
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उसने कहा कि महामारी का अर्थव्यवस्था पर वैसे समय प्रभाव पड़ा है जब अर्थव्यवस्था में पहले से ही गिरावट हो रही थी. देश के वास्तविक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 2017-18 में 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जो 2018-19 में घटकर 6.1 प्रतिशत और 2019-20 में 4.2 प्रतिशत पर आ गयी. विश्वबैंक ने कहा कि हालांकि भारत ने नीतिगत मोर्चे पर कई सुधार किये हैं. इनमें कंपनी दर में कटौती, छोटे कारोबारियों के लिये नियामकीय ढील, व्यक्तिगत आयकर की दरो में कटौती, व्यापार नियामकीय सुधार शामिल हैं, लेकिन महामारी ने इनके अपेक्षित परिणामों को लेकर उम्मीदें घटा दी हैं.
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उसने कहा कि परिदश्य अब उल्लेखनीय रूप से बदल गया है और अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष में गिरावट आएगी. विश्वबैंक के अनुसार महामारी का आर्थिक प्रभाव घरेलू मांग और आपूर्ति बाधा के रूप में दिखेगा. इससे व्यापार, परिवहन, पर्यटन और यात्रा जैसे कुछ सेवा क्षेत्र ध्वस्त होने की कगार पर पहुंच जाएंगे। उसने कहा कि कोविड-19 संकट से बाहर आने के लिये स्वास्थ्य, श्रम, भूमि, कौशल और वित्त जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधारों को लगातार आगे बढ़ाने की जरूरत है.