भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) ने भी सोमवार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की मांग उठाई। इससे पहले एसोचैम की ओर से पीएसबी के निजीकरण की मांग की जा चुकी है।
फिक्की का कहना है कि पिछले दशक के पहले से ही सरकारी बैंकों के पुनर्पूजीकरण से उनकी सेहत पर बहुत कम असर हुआ है। लिहाजा, सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण कर देश में बैंकिंग क्षेत्र को गतिशील बनाया जाना चाहिए।
इससे पहले रविवार को उद्योग संगठन एसोचैम ने आभूषण कारोबारी नीरव मोदी द्वारा पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) को 11,400 करोड़ रुपये की चपत लगाने के आलोक में सरकार से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से अपना नियंत्रण समाप्त करने की मांग की।
फिक्की की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, 'फिक्की सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण करने की सिफारिश करता है। पिछले 11 साल से रिकैपटिलाइजेशन (पुनर्पूजीकरण) से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सेहत को सुधारने की दिशा में सीमित प्रभाव देखा गया है।'
फिक्की ने कहा, 'भारतीय बैंकिंग प्रणाली में 70 फीसदी हिस्सेदारी वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में दबाव वाली परिसंपत्तियां बढ़ती जा रही हैं।'
फिक्की के प्रेसिडेंट राशेश शाह ने एक बयान में कहा, 'सरकार पीएसबी को पहले ही पुनर्पूजीकरण के जरिये पिछले 11 साल में 2.6 लाख करोड़ रुपये दे चुकी है जिससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक की सेहत में सुधार पर सीमित प्रभाव पड़ा है।'
मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमण्यम ने भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों में ज्यादा निजी भागीदारी की वकालत की है।
चेन्नई में शनिवार को एक कार्यक्रम में सुब्रमण्यम ने कहा कि सरकार जब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पुनर्पूजीकरण कर रही है तो बैंकों में जांच, निगरानी और अनुशासनात्मक परिनियोजन अवश्य अधिक निजी भागीदारी के जरिये सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
उनके अनुसार, निजी क्षेत्र में सार्वजनिक ऋण कम होना चाहिए और इसके लिए बैंकिंग क्षेत्र में ज्यादा निजी भागीदारी होनी चाहिए।
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Source : IANS