भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गर्वनर बिमल जालान ने कहा है कि अगर वह देश के केंद्रीय बैंक के शीर्ष पद पर होते इसकी इजाजत नहीं देते।
उन्होंने कहा कि काले धन की समस्या से निपटने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए जड़ पर प्रहार करने की जरूरत है। हमें देखना होगा कि करों की दरें बहुत ज्यादा उच्च तो नहीं है।
जालान ने ने बुधवार को उनकी किताब 'भारत : भविष्य की प्राथमिकता' के लोकार्पण के मौके पर कहा, 'भारत सरकार रुपये की गारंटी देती है। जब तक कोई बहुत बड़ा संकट न हो, मैं नोटबंदी की इजाजत नहीं देता।'
यह पूछे जाने पर कि क्या कोई संकट था, जिसके कारण नोटबंदी की गई? उन्होंने जोर देकर कहा, 'नहीं।' जालान केंद्र सरकार में वित्त सचिव थे। उसके बाद वह 1997 से 2004 तक आरबीआई के गर्वनर रहे।
उन्होंने कहा, 'नोटबंदी का नकारात्मक असर हुआ, लेकिन इससे बचत, जमा, लोगों के निवेश और ज्यादा आयकर रिटर्न दाखिल होने से सकारात्मक फायदे भी हुए।'
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जालान का कहना है कि नीतियां बनाने के हमेशा दो पहलू होते हैं। विशेष जमा योजनाओं से भी काले धन को निकाला जा सकता है।
उन्होंने कहा, 'अगर रियल एस्टेट में काला धन पैदा हो रहा है, तो हमें वहां कुछ करना चाहिए। समस्या की जड़ पर वार करना चाहिए। मेरे हिसाब से नोटबंदी के कारण जनता पर नकदी की कमी से काफी बुरा असर पड़ा।'
उन्होंने कहां, 'हमें संतुलित रुख रखना चाहिए। अगर काले धन से निपटना है तो हमें देखना होगा कि इसका कारण क्या है। क्या कर की दरें ज्यादा है? क्या लोग कर चोरी कर रहे हैं?'
उन्होंने कहा कि हालांकि नोटबंदी का कोई दीर्घकालिक नुकसान नहीं होगा। जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की दर गिरकर 6.1 फीसदी पर आ गई है। एक बार की नोटबंदी से देश की दीर्घकालिक वृद्धि दर प्रभावित होगी।
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नौकरीविहीन विकास दर की आलोचना के बारे में उन्होंने कहा कि यह सही है। अगर विकास दर में वृद्धि से नौकरियां नहीं पैदा होंगी और गरीबी दूर नहीं होती है तो यह सही है।
जीएसटी के बारे में उन्होंने कहा कि इसकी दरों को हर साल बदलने की जरूरत नहीं है। यह एक बहुत बड़ा कदम है। जीएसटी पर सेस लगाने के बारे में उन्होंने कहा कि यह नहीं होना चाहिए।
Source : IANS