एक समय था जब 'लखटकिया कार' की लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी. 2008 में इसके आने की चर्चाएं गर्म थीं. चारों तरफ से ऐसी खबरें आ रही थीं कि कार बाजार में आते ही धमाका करेगी. यह आम मध्यवर्गीय की पहचान बन जाएगी, मगर ऐसा हुआ नहीं. 2009 में जब ये बाजार में आई तो इसका नकारात्मक प्रचार होना शुरू हो गया. आम मध्यवर्गीय लोगों में 'सस्ती' कार का टैग लग गया. लोग नैनो से दूरी बनाने लगे. समय के साथ इसकी बिक्री घटनी शुरू हो गई. हालात ऐसे बने कि साल 2019 में फरवरी के माह में टाटा नैनो कार की सिर्फ एक यूनिट की बिक्री हुई. बीएस-4 उत्सर्जन मानक लागू होने और घटती बिक्री को देखते हुए टाटा मोटर्स ने 2018 में ही नैनो के उत्पादन को बंद करने का निर्णय लिया.
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कैसे आया टाटा नैनो का विचार
भारत के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा काफी दूरदर्शी थे. उन्होंने अपने कारोबार को लोगों की जरूरतों के हिसाब से समर्पित किया. उनका विचार था कि एक ऐसी कार बनाई जाए जो हर मध्यवर्गीय परिवार के पास हो. इसका नाम नैनो रखा गया. यह रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था. रतन टाटा ने इसे आम लोगों की कार बताया था.
रतन टाटा ने नैनो कार को ऑटो एक्सपो में पेश किया
साल 2008 में रतन टाटा ने नैनो कार को पहली बार भारत में ऑटो एक्सपो में लॉच किया. यह एक छोटी कार थी और खास तौर पर उन परिवारों के लिए बनाई गई, जिन्हें मोटरसाइकिल की कीमत में एक कार मिल रही थी. कार हर मध्यवर्गीय परिवार के लिए एक सपना होती है. लोग मोटरसाइकिल नहीं बल्कि नैनो कार की बात कर रहे थे.
शानदार माइलेज
टाटा नैनो कार का माइलेज शानदार था. ये 21.9 से 23.9 किलोमीटर प्रति लीटर थी. मैनुअल पेट्रोल वेरिएंट का माइलेज 23.9 किलोमीटर प्रति लीटर था. ऑटोमेटिक पेट्रोल वेरिएंट का माइलेज 21.9 किलोमीटर प्रति लीटर था. मैनुअल सीएनजी वेरिएंट का माइलेज 36 किलोमीटर प्रति किलोग्राम था.
छवि पर पड़ा गहरा असर
शुरुआती समय में नैनो कार काफी सफल रही. बाद में ये आलोचना से घिर गई. टाटा नैनो की कई गाड़ियों में आग लगने की घटना सामने आई. इससे कार को लेकर आशंकाएं लोगों के बीच उत्पन्न होने लगी. कार की छवि पर गहरा असरा दिखा. फिर पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा मोटर्स ने नैनो प्लांट के खिलाफ आंदोलन के बाद इस प्लांट को गुजरात में शिफ्ट किया.
बारिश में भीगते एक परिवार को देखकर आया विचार
रतन टाटा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि बारिश में उन्होंने चार लोगों के एक परिवार को बाइक पर जाते हुए देखा था. वह भीग रहे थे और काफी परेशान हो रहे थे. इसके बाद उनके दिमाग में सस्ती कार का ख्याल आया. एक सुरक्षित यात्रा का विचार सामने आया. रतन टाटा का कहना था कि उन्हें इस पर काफी गर्व था कि वे लोगों के सपने को साकार कर रहे थे. एक छोटी फैमली बिना किसी परेशानी के सुरक्षित तरह से सफर कर सकती थी.