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रेपो रेट में कटौती को लेकर RBI गवर्नर, डिप्टी गवर्नर की राय अलग-अलग, मौद्रिक नीति समिति की बैठक में दिखा अंतर

मौद्रिक नीति समिति (MPC) के गठन के बाद यह पहली बार हुआ है जब केंद्रीय बैंक प्रमुख और उनके उप प्रभारी की राय पॉलिसी रेट को लेकर अलग-अलग रही हो.

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Deepak Kumar
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रेपो रेट में कटौती को लेकर RBI गवर्नर, डिप्टी गवर्नर की राय अलग-अलग, मौद्रिक नीति समिति की बैठक में दिखा अंतर

RBI गवर्नर शक्तिकांत दास और डिप्टी गवर्नर निरल आचार्य

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भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने शुक्रवार को रेपो रेट में 0.25 पैसे की कटौती का ऐलान किया. हालांकि रिजर्व बैंक की द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा के दौरान गवर्नर शक्तिकांत दास और डिप्टी गवर्नर निरल आचार्य के मत अलग थे. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के गठन के बाद यह पहली बार हुआ है जब केंद्रीय बैंक प्रमुख और उनके उप प्रभारी की राय पॉलिसी रेट को लेकर अलग-अलग रही हो. एक तरफ गवर्नर शक्तिकांत दास 25 बेसिस प्वाइंट की कमी करना चाहते थे तो वहीं विरल आचार्य जो RBI मौद्रिक नीति समिति का नेतृत्व कर रहे थे ब्याज दर को यथास्थिति बरकरार रखना चाहते थे.

आख़िर में मौद्रिक नीति समिति के अंदर 4:2 के वोट से रेपो रेट में कटौती का फ़ैसला लिया गया. बता दें कि MPC के 6 सदस्यों में से 3 सदस्य RBI से हैं और बाकी के तीन बाहरी सदस्य थे. गवर्नर शक्तिकांत दास और डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के अलावा माइकल डी पात्रा RBI से थे. डी पात्रा ने भी रेपो रेट में कटौती का सुझाव दिया था. जबकि बाहरी सदस्यों में से रविंद्र एच ढोलकिया और पामी दुआ गर्वनर के राय से सहमत थे, वहीं चेतन घाटे विरल आचार्य की तरह ही यथास्थिति बरकरार रखना चाहते थे.

हालांकि मौद्रिक नीति समिति के अंदर गवर्नर और डिप्टी गवर्नर के बीच किन विषयों को लेकर मतांतर था यह RBI MPC बैठक की रिलीज़ जारी होने के बाद ही पता चल पाएगा.
यस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री शुभदा राव और वरिष्ठ अर्थशास्त्री विवेक कुमार ने ब्याज दरों में बदलाव को लेकर कहा, 'MPC मौद्रिक नीति रुख में बदलाव के मुद्दे पर सर्वसम्मत था लेकिन वोटिंग पैटर्न को लेकर उनके विचारों में अतर था. मौद्रिक नीति समिति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब वोटिंग में 4:2 से कोई फ़ैसला लिया गया हो. बाज़ार के बेहतर भविष्य को देखते हुए किए गए आकलन की वजह से विचारों में यह अंतर देखने को मिल रहा है.'

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बैंक सूत्रों के मुताबिक, 'मौद्रिक नीति समिति के एक और सदस्य ने अगर ब्याज दरों में बदलाव का विरोध किया होता तो फ़ैसला टाई (बराबरी) होता. ऐसे में गवर्नर अपने मताधिकार का प्रयोग कर रेपो रेट में कमी के फ़ैसले को लागू कर सकता था.'

Source : News Nation Bureau

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