NITI Aayog Poverty Report: केंद्र सरकार की पहल से देश में गरीबों की संख्या लगातार कम हो रही है. सोमवार को जारी नीति आयोग की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. नीति आयोग द्वारा जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक में कहा गया है कि पिछले 5 साल में 10 फीसदी गरीबों से कम 'बहुआयामी गरीबी' वाले राज्यों की संख्या में दो गुने से ज्यादा की इजाफा हुआ है. यानी गरीबों वाले राज्यों की संख्या में कमी आई है. 'राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: समीक्षा की प्रगति 2023' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट को तीन बिंदुओं के आधार पर तैयार किया गया है. जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर की जांच शामिल है. इसके साथ ही रिपोर्ट में प्रत्येक में विभिन्न उप-संकेतकों को भी शामिल किया गया है.
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जिसमें मानक आय-आधारित दृष्टिकोण को नियोजित करने के बजाय, भारत में गरीबी के विभिन्न आयामों को जोड़ने के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों का भी इस्तेमाल किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015-16 (NFHS-4) में देश के सात राज्यों में 10 फीसदी से कम आबादी बहुआयामी गरीबी में जी रही थी. इन राज्यों में मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, सिक्किम, तमिलनाडु, गोवा और केरल शामिल है. वहीं 2019-21 (NFHS-5) की सूची में इन राज्यों की संख्या बढ़कर दो गुनी हो गई. अब इस सूची में 14 राज्यों को शामिल किया गया है. इस सूची में जिन नए सात राज्यों को शामिल किया गया है उनमें तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मणिपुर और उत्तराखंड शामिल हैं. इन सभी राज्यों में गरीबी में जी रहे लोगों की संख्या में उल्लेखनीय कमी देखी गई है.
पांच सालों में इन राज्यों में कम हुए गरीब
तेलंगाना में बहुआयामी गरीबी के तहत रहने वाले लोगों का प्रतिशत 13.18 प्रतिशत से घटकर 5.88 प्रतिशत हो गया, जबकि आंध्र प्रदेश में ये आंकड़ा 11.77 प्रतिशत से गिरकर 6.06 प्रतिशत पर आ गया. वहीं हरियाणा में 11.88 प्रतिशत से कम होकर 7.07 प्रतिशत और कर्नाटक में 12.77 प्रतिशत से मुकाबले अब 7.8 प्रतिशत गरीब बचे हैं. वहीं महाराष्ट्र में पहले गरीबों की संख्या 14.8 प्रतिशत थी जो अब गिरकर 7.81 प्रतिशत हो गई है. वहीं मणिपुर में गरीबों की संख्या 16.96 से कम होकर 8.1 प्रतिशत हो गई है. उधर उत्तराखंड में 17.67 फीसदी गरीबों की तुलना में ये आंकड़ा अब 9.67 फीसदी पर आ गया है.
13.5 करोड़ से ज्यादा लोग निकले गरीबी से बाहर
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारस में इस दौरान लगभग 13.5 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाला है. साल 2015-16 में, चार में से एक भारतीय (24.85 प्रतिशत) बहुआयामी गरीबी के मानदंडों को पूरा करता था. जो 2019-21 तक घटकर 14.96 प्रतिशत या सात में से एक हो गया. बता दें कि बिहार को छोड़कर, भारत के किसी भी अन्य राज्य की एक तिहाई से अधिक आबादी बहुआयामी गरीबी से बाहर निकल चुकी है. लेकिन यहां भी तेजी से जीवन स्तर बदल रहा है. साल 2015-16 में, बिहार की 51.89 प्रतिशत से अधिक आबादी बहुआयामी गरीबी में जी रही थी जो 2019-21 में गिरकर 33.76 फीसदी पर आ गई.
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दूसरे शब्दों में कहें तो जहां 2015-16 में बिहार में हर दो में से एक व्यक्ति बहुआयामी गरीबी में जी रहा था, तो वहीं अब यह संख्या बढ़कर तीन में से एक हो गई है. इसी तरह झारखंड में बहुआयामी गरीबी के तहत रहने वाले लोगों का प्रतिशत 2015-16 में 42 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 28.82 प्रतिशत हो गया. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में बहुआयामी गरीबी का आंकड़ा 37.68 प्रतिशत से कम होकर 22.93 फीसदी पर आ गया है. मध्य प्रदेश में बहुआयामी गरीबी का आंकड़ा पहले 36.57 प्रतिशत था जो अब 20.63 प्रतिशत पर आ गया. हालाकि, डेटा की एक और जांच से पता चलता है कि जीवन स्तर, स्वास्थ्य और शिक्षा के तीन मुख्य मानकों में गरीबी का आंकड़ों में समान रूप से गिरावट नहीं आई है.
HIGHLIGHTS
- भारत में कम हुई गरीबों की संख्या
- बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले 13.5 करोड़ लोग
- नीति आयोग की रिपोर्ट में किया गया खुलासा
Source : News Nation Bureau