RBI Monetary Policy : ब्‍याज दरों में कोई बदलाव नहीं, EMI पर नहीं पड़ेगा असर

आरबीआई (RBI) ने मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद रेपे और रिवर्स रेपो दरों के साथ सभी महत्‍वपूर्ण दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया है.

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vinay mishra
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RBI Monetary Policy : ब्‍याज दरों में कोई बदलाव नहीं, EMI पर नहीं पड़ेगा असर

RBI Monetary Policy

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रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद रेपो रेट में कोई परिवर्तन नहीं किया है. इस वक्‍त रेपो की दर 6.5 फीसदी पर है. रिजर्व बैंक (RBI) ने अपने इस कदम को केलेब्रेटिड टाइटनिंग (calibrated tightening) बताया है. यह लगातार दूसरी बार है जब रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी प्रमुख दरों को नहीं बदला है. इससे लोगों की EMI की फिलहाल कोई अंतर नहीं पड़ेगा.

प्रमुख बातें एक नजर में

-रेपो रेट 6.5 फीसदी के स्तर पर कायम

-RBI ने 2018-19 के लिए GDP में 7.4 फीसदी का अनुमान जाहिर किया

-स्टैच्यूरी लिक्विडिटी रेशियो (SLR) में 0.25 फीसदी की कटौती

-इस समय SLR दर 19.5 फीसदी

FY19 में 7.4% GDP ग्रोथ का अनुमान
बैंक ने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 7.4 फीसदी रखा है. वहीं, वित्त वर्ष 2019-20 की पहली छमाही के लिए जीडीपी ग्रोथ रेट का अनुमान 7.5 फीसदी है.

महंगाई दर का अनुमान घटाया
रिजर्व बैंक का कहना है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही (अक्टूबर-मार्च) के दौरान महंगाई का अनुमान 2.7-3.2 फीसदी रह सकती है. पहले यह अनुमान 3.9-4.5% था.

SLR कैसे डालता है असर?

बैंक जिस रेट पर अपना पैसा सरकार के पास रखते है, उसे एसएलआर कहते हैं. नकदी की लिक्विडिटी को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. कॉमर्शियल बैंकों को रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार एक निश्चित राशि कैश, सोना या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त बॉन्डों में निवेश करना होता है. इस पर रिजर्व बैंक नजर रखता है, ताकि बैंकों के उधार देने पर नियंत्रण रखा जा सके.

बाजार में डाला पैसा

इससे पहले आरबीआई (RBI) ने बीते मंगलवार को ओपेन मार्केट्स (OMOs) के जरिए सरकारी सिक्योरिटीज की खरीद के जरिए सिस्टम में 10,000 करोड़ रुपये डालने की घोषणा की है. इससे बाजार में लिक्विडिटी बढ़ेगी, जिसकी काफी कमी महसूस की जा रही है.

rbi monetary policy से जुड़े शब्‍द

रेपो रेट (Repo rate)

रेपो रेट (Repo rate) वह दर होती है जिस पर बैंकों को आरबीआई (RBI) कर्ज (loan) देता है. बैंक (Bank) इस कर्ज से ग्राहकों को लोन (loan) देते हैं. रेपो रेट (Repo rate) कम होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे. जैसे कि होम लोन (Home Loan), व्हीकल लोन (Auto loan) वगैरह.

रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate)
जैसा इसके नाम से ही साफ है, यह रेपो रेट से उलट होता है. यह वह दर होती है जिस पर बैंकों (Bank) को उनकी ओर से आरबीआई (RBI) में जमा धन पर ब्याज (Interest rates) मिलता है. रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है. बाजार में जब भी बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) बढ़ा देता है, ताकि बैंक (Bank) ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दे.

सीआरआर (CRR)
देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत हरेक बैंक (Bank) को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं.

एसएलआर (SLR)
जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते है, उसे एसएलआर (SLR) कहते हैं. नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है. आरबीआई (RBI) जब ब्याज दरों (Interest rates) में बदलाव किए बगैर नकदी की तरलता कम करना चाहता है तो वह सीआरआर (CRR) बढ़ा देता है, इससे बैंकों के पास लोन (Loan) देने के लिए कम रकम बचती है.

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