भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) आज अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक के बाद नीतियों की घोषणा करेगा. जानकारों की राय है इस बार आरबीआई (RBI) अपनी प्रमुख दरों में कोई बदलाव नहीं करेगा. इसका कारण आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट और मुद्रास्फीति के नीचे आने की गति उसके अनुमान के अनुसार न होना है.
बाजार में डाला पैसा
इससे पहले आरबीआई (RBI) ने बीते मंगलवार को ओपेन मार्केट्स (OMOs) के जरिए सरकारी सिक्योरिटीज की खरीद के जरिए सिस्टम में 10,000 करोड़ रुपये डालने की घोषणा की है. इससे बाजार में लिक्विडिटी बढ़ेगी, जिसकी काफी कमी महसूस की जा रही है.
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घटाया जा सकता है महंगाई लक्ष्य
जानकारों का कहना है कि आरबीआई (RBI) इस बार शायद महंगाई के अनुमान में कुछ कटौती करे. आरबीआई (RBI) का वित्त वर्ष की दूसरी छमाही यानी अक्टूबर-मार्च के लिए अभी मुद्रास्फीति लक्ष्य 3.9-4.5 फीसदी तक है. मौद्रिक नीति की बैठक में इसे घटाया जा सकता है.
दो बार बढ़ चुकी है प्रमुख दरें
जून से आरबीआई (RBI) ने नीतिगत दरों में लगातार दो बार वृद्धि की. उसके बाद अक्टूबर में बाजार की उम्मीदों के विपरीत केंद्रीय बैंक ने ने ब्याज दरों में कोई बदलावा नहीं किया था.
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जानें मॉनिटरी पॉलिसी से जुड़े शब्द
रेपो रेट (Repo rate)
रेपो रेट (Repo rate) वह दर होती है जिस पर बैंकों को आरबीआई (RBI) कर्ज (loan) देता है. बैंक (Bank) इस कर्ज से ग्राहकों को लोन (loan) देते हैं. रेपो रेट (Repo rate) कम होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे. जैसे कि होम लोन (Home Loan), व्हीकल लोन (Auto loan) वगैरह.
रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate)
जैसा इसके नाम से ही साफ है, यह रेपो रेट से उलट होता है. यह वह दर होती है जिस पर बैंकों (Bank) को उनकी ओर से आरबीआई (RBI) में जमा धन पर ब्याज (Interest rates) मिलता है. रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है. बाजार में जब भी बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) बढ़ा देता है, ताकि बैंक (Bank) ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दे.
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सीआरआर (CRR)
देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत हरेक बैंक (Bank) को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं.
एसएलआर (SLR)
जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते है, उसे एसएलआर (SLR) कहते हैं. नकदी की तरलता को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है. आरबीआई (RBI) जब ब्याज दरों (Interest rates) में बदलाव किए बगैर नकदी की तरलता कम करना चाहता है तो वह सीआरआर (CRR) बढ़ा देता है, इससे बैंकों के पास लोन (Loan) देने के लिए कम रकम बचती है.
Source : News Nation Bureau