भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने चालू वित्त वर्ष की अंतिम मौद्रिक नीति समीक्षा में, गुरुवार को रेपो रेट को घटाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया. आरबीआई ने कहा कि यह फैसला उभरती हुई व्यापक आर्थिक स्थिति के आकलन के आधार पर किया गया है. रेपो रेट वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है. RBI को अक्टूबर-दिसंबर महीने में जीडीपी 7.5 फीसदी रहने का अनुमान है. जबकि वित्त वर्ष 2020 में जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 7.4 फीसदी रहने का अनुमान है. अप्रैल से सितंबर के बीच ग्रोथ का अनुमान 7.2-7.4 फीसदी रखा गया है.
रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि आने वाले समय में मंहगाई दर भी कम होगी. जनवरी से मार्च के बीच रिटेल महंगाई 2.8 फीसदी और अप्रैल से सितंबर के दौरान रिटेल महंगाई 3.2 से 3.4 फीसदी रहने का अनुमान है.
फैसले की घोषणा से पहले एसबीआई इकोरैप रिपोर्ट में कहा गया था, 'आरबीआई के फरवरी में अपने रुख में बदलाव करने की उम्मीद है, हालांकि दरों में बढ़ोतरी करने की संभावना कम ही है. दरों में पहली कटौती अप्रैल 2019 में की जा सकती है. हालांकि, अगर बैंक 7 फरवरी को दर में 0.25 फीसदी की कटौती करता है तो हमें हैरानी नहीं होगी.'
RBI: Repo rate reduced by 25 basis points, now at 6.25 from 6.5 per cent pic.twitter.com/GQ1kaWOmL0
— ANI (@ANI) February 7, 2019
रेपो रेट क्या है और कैसे आम लोगों पर डालता है असर ?
जिस तरह बैंकों से हम कर्ज लेते हैं, ठीक उसी तरह रोजमर्रा के कामकाज के लिए बैंकों को भी बड़ी रकम की जरूरत पड़ती है. ये रकम उसे आरबीआई से कर्ज के रूप में मिलती है. बैंक आरबीआई से जिस दर से कर्ज लेते हैं उसे रेपो रेट कहते हैं. यानी जितना ब्याज बैंक आरबीआई को चुकाएगा उतना वो अपने ग्राहक से वसूलेंगे.
अब आप इसे इस तरह समझे कि जब बैंकों को कम दर पर कर्ज मिलेगी तो वे भी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपनी ब्याज दरों को कम कर सकते हैं, ताकि कर्ज लेने वाले ग्राहकों में ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ोतरी की जा सके और ज़्यादा रकम कर्ज पर दी जा सके.
अगर आरबीआई रेपोट रेट में बढ़ोतरी करती हैं तो बैकों को कर्ज लेना महंगा पड़ेगा और वे अपने ग्राहकों से वसूल करने वाले ब्याज दर में इजाफा कर देंगे.
इससे पहले की मौद्रिक समीक्षा बैठक में केंद्रीय बैंक ने बेंचमार्क ब्याज दर यानी रेपो रेट 6.5 फीसदी पर स्थिर रखी थी और रिवर्स रेपो रेट 6.25 फीसदी पर यथावत रखी गई थी. बता दें कि 5-7 फरवरी के बीच वित्त वर्ष 2018-19 में आरबीआई की छठी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक हुई है.
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक समीक्षा की बैठक के नतीजों, घरेलू व विदेशी आर्थिक आंकड़ों और वैश्विक बाजार से मिलने वाले संकेतों से भारतीय बाजार की दिशा तय होगी.
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बीते सप्ताह के आखिरी सत्रों में अंतरिम बजट की घोषणाओं से बाजार में तेजी का रुख बना रहा, लेकिन इस बजटीय प्रावधानों को समझने के बाद इस सप्ताह इस बाजार की प्रतिक्रिया देखने को मिल सकती है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम में उतार-चढ़ाव, डॉलर के मुकाबले रुपये की चाल का भी भारतीय शेयर बाजार पर असर देखने को मिलेगा. साथ ही, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों और घरेलू संस्थागत निवेशकों की दिलचस्पी बाजार की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण होगी.
Source : News Nation Bureau