8 नवंबर 2016 को नोटबंदी लागू करने के बाद मोदी सरकार ने इसकी वकालत करते हुए 4 बड़े मुद्दे - काला धन, नकली नोट, टेरर फंडिंग और 'लेस कैश सोसायटी' जैसी चुनौतियां सामने रखी थीं।
इन चुनौतियों पर सरकार कितनी खरी उतरी यह देखने वाली बात है लेकिन डिजिटल ट्रांज़ेक्शन में ज़रुर सरकार को निराशा हाथ लगी है।
आरबीआई की रिपोर्ट तो कम से कम यही कहती है। बुधवार को आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नोटबंदी के बाद जुलाई महीने में ई-ट्रांज़ेक्शन में ज़बरदस्त गिरावट आई है और यह पिछले 5 महीनों में सबसे कम दर्ज किया गया है।
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नवंबर 2016 में ई-पेमेंट से 94 लाख करोड़ का ट्रांज़ेक्शन हुआ जो दिसंबर में बढ़कर 104 लाख करोड़ और उसके बाद मार्च में 149 लाख करोड़ हुआ इसके बाद जुलाई में इसमें गिरावट देखी गई और यह गिरकर 107 लाख करोड़ देखा गया जोकि बीते पांच महीने में सबसे निम्नस्तर है।
इसके अलावा बाकी मुद्दों पर भी केंद्र सरकार को कोई ख़ास सफलता नहीं मिली। नोटबंदी के बाद एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए अनुमान जताया था कि कुल सर्कुलेटेड 15-16 लाख करोड़ रुपये में से सरकार को उम्मीद है कि 10-11 लाख करोड़ रुपये सिस्टम में वापस आएंगे।
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उन्होंने कहा था, '4-5 लाख करोड़ रुपये जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने में इस्तेमाल हो रहे है, जोकि बिल्कुल खत्म हो जाएगा।' इसके अलावा शीर्ष वित्त मंत्रालय के अधिकारी ने भी अंदेशा जताया था कि 3 लाख करोड़ रुपये बैंकिंग सिस्टम में नहीं लौटेंगे।
इसके बाद बुधवार को रिज़र्व बैंक कि रिपोर्ट में यह साफ हो गया कि 99 प्रतिशत रकम बैंकिंग सिस्टम में वापस लौटी है।
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Source : News Nation Bureau