देश की अर्थव्यवस्था विभिन्न अनुमानों की तुलना में तेजी से कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभाव से बाहर आ रही है और आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में ही सकारात्मक दायरे में आ जाएगी. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अधिकारियों के एक लेख में यह कहा गया है. इसमें कहा गया है, ‘‘...इस बात के कई साक्ष्य हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड-19 महामारी के कारण गहरे गर्त से तेजी से बाहर आ रही है. यह सर्दियों की लंबी छाया से बाहर निकलते हुए सूरज के उजाले की ओर बढ़ रही है ... सरकार के मौद्रिक एवं राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों के जरिये अनुमानों के विपरीत अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है.’’
कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित भारतीय अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 23.9 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आयी. वहीं दूसरी तिमाही में गिरावट कम होकर 7.5 प्रतिशत रही. रिपोर्ट का हवाला देते हुए लेख में कहा गया है, ‘‘वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर तीसरी तिमाही में सकारात्मक दायरे में आ सकती है. हालांकि, इस दौरान यह वृद्धि दर केवल 0.1 प्रतिशत रह सकती है.’’ इसमें कहा गया है कि दो महत्वपूर्ण कारक अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं. लेख में कहा गया है, ‘‘पहला, भारत में कोविड संक्रमण की दर कम हुई है.
सितंबर के मध्य से स्थानीय स्तर पर कुछ मामलों में वृद्धि को छोड़ दिया जाए तो इसमें गिरावट की प्रवृत्ति है इससे निवेश और खपत मांग को समर्थन मिल रहा है.’’ इसके अनुसार, ‘‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज में उपभोग व्यय से आत्मनिर्भर भारत 2.0 और 3.0 में निवेश खर्च पर ध्यान देकर राजकोषीय उपायों के जरिये एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया गया.’’ महत्वपूर्ण आंकड़ों (पीएमआई, बिजली खपत, माल ढलाई, जीएसटी) के आधार पर यह पता चलता है कि आर्थिक गतिविधियों में 2020-21 की दूसरी छमाही से जो तेजी आयी है, वह आगे भी बनी रहेगी.
भारत में संक्रमण के दूसरे दौर की आशंका अब तक नदारद है. इसके साथ उपयुक्त वृहत आर्थिक नीतियों के साथ ‘लॉकडाउन’ में सही समय पर तेजी से ढील दिये जाने से अर्थव्यवस्था में गतिविधियां सामान्य हुई है और अब इसमें तेजी आ रही है. आरबीआई ने हालांकि, कहा है कि लेख में लेखकों के अपने विचार हैं और जरूरी नहीं हैं कि वे केंद्रीय बैंक के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों.
लेख लिखने वाले लेखकों ने कहा कि विभिन्न एजेंसियों ने पूरे साल के लिये अर्थव्यवस्था में गिरावट का जो अनुमान जताया था, उसमें पहले ही कमी आ चुकी है और अगर मौजूदा गति बरकरार रहती है तो, अर्थव्यवस्था में साल की अंतिम तिमाही में तेजी लौट सकती है और विभिन्न अनुमानों के मुकाबले ज्यादा मजबूत होगी. लेख के अनुसार साथ ही एक बड़ी समस्या मुद्रास्फीति की है. उससे पहले कि यह आर्थिक वृद्धि पर असर डाले, उसे काबू में करने के लिये दोगुनी गति से काम करने की जरूरत होगी.
इसमें कहा गया है कि खुदरा विक्रेताओं के तेजी से बढ़ते मार्जिन पर लगाम और अप्रत्यक्ष कर का उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के साथ कुशल,प्रभावी और आपूर्ति प्रबंधन से मुद्रास्फीति की गति को समय रहते कुंद किया जा सकता है जिससे वह राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहनों के मकसद को प्रभावित नहीं करे.
Source : Bhasha