टाटा मोटर्स ने अपने करीब 1500 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। इसके अलावा कंपनी ने अपने कुछ कर्मचारियों का तबादला कर दिया है साथ ही कुछ लोगों को वीआरएस भी दे दिया है।
कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर गुंटर बुत्शेक ने कहा, 'कंपनी के कुल 13 हजार मैनेजरों में करीब 10-12 फीसदी की कमी की गई है।' हालांकि टाटा मोटर्स के मैनेजमेंट ने साफ किया है कि छंटनी का असर कामगारों की नौकरियों पर नहीं पड़ेगा।
टाटा मोटर्स के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर सी रामकृष्णन ने कहा, 'हमने कर्मचारियों की भूमिका और जरूरत का बहुत गहनता से विश्लेषण किया है। इस फैसले तक पहुंचने में हमें 6-9 महीने तक का वक्त लगा है। हमने छंटनी के वक्त परफॉर्मेंस और नेतृत्व क्षमता जैसी खूबियों का ख्याल रखा है।'
टाटा मोटर्स के अधिकारियों का दावा है कि छंटनी लागत घटाने के लिहाज से नहीं की जा रही है बल्कि इसकी वजह संस्थान के ढांचे को चुस्त-दुरुस्त करना है।
इस छंटनी से मोदी सरकार के उस दावे पर सवाल उठते हैं जिसमें कहा गया है कि छंटनियां नहीं हो रही हैं।
बता दें कि हाल ही में लार्सन टर्बो ने इस साल 14, 000 लोगों की छंटनी का ऐलान किया है। वहीं एचडीएफसी बैंक ने भी अब तक अपने 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी कर दी है।
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जबकि आईटी सेक्टर से भी लगातार छंटनी की ख़बरें आ रही है और अनुमान के मुताबिक अब तक इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर से 50 हजार लोगों को नौकरी से निकाला जा चुका है।
हाल ही में नौकरी डॉट कॉम के एक सर्वे में यह बात सामने आई थी कि आईटी सेक्टर में भर्तियों में 24 प्रतिशत गिरावट हुई है।
जबकि मोदी सरकार छंटनी की ख़बरों से इनकार कर रही है वो भी तब जब कि खुद श्रम मंत्रालय ने माना है कि साल 2014 में केंद्र में सरकार बनाने के बाद से देश में बेरोजगारी बढ़ी है। यह खुलासा सरकारी आंकड़ों में हुआ है।
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Source : News Nation Bureau