अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सतत रोजगार केंद्र की एक हालिया रिपोर्ट में बेरोजगारी दर के 20 वर्षों में सबसे अधिक होने की बात कही गई है. रिपोर्ट के मुख्य लेखक ने भारत में बेरोजगारी दर के बढ़ने की वजह नौकरियों के सृजन की गति धीमी होना, कार्यबल बढ़ने के बजाए कम होना और शिक्षित युवाओं के तेजी से श्रमबल में शामिल होने को बताया है.
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लिबरल स्टडीज, अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर और देश में बढ़ती बेरोजगारी पर से पर्दा उठाने वाली स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया, 2018 रिपोर्ट के मुख्य लेखक अमित बसोले ने बताया, "यह आंकड़े श्रम ब्यूरो के पांचवीं वार्षिक रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण (2015-2016) पर आधारित है." श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, कई सालों तक बेरोजगारी दर दो से तीन प्रतिशत के आसपास रहने के बाद साल 2015 में पांच प्रतिशत पर पहुंच गई, इसके साथ ही युवाओं में बेरोजगारी की दर 16 प्रतिशत तक पहुंच गई है.
अमित बसोले ने कहा, "देश में बढ़ती बेरोजगारी के पीछे दो कारक हैं, पहला 2013 से 2015 के बीच नौकरियों के सृजन की गति धीमी होना, कार्यबल बढ़ने के बजाए कम होना क्योंकि कुल कार्यबल (नौकरियों में लगे लोगों की संख्या) बढ़ने की बजाए घट गया है. दूसरा कारक यह है कि श्रम बल में प्रवेश करने वाले अधिक शिक्षित युवा, जो उपलब्ध किसी भी काम को करने के बजाय सही नौकरी की प्रतीक्षा करना पसंद करते हैं."
स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया
स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया, 2018 रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015 में बेरोजगारी दर पांच प्रतिशत थी, जो पिछले 20 वर्षो में सबसे ज्यादा देखी गई है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि के परिणामस्वरूप रोजगार में वृद्धि नहीं हुई है. अध्ययन के मुताबिक, जीडीपी में 10 फीसदी की वृद्धि के परिणामस्वरूप रोजगार में एक प्रतिशत से भी कम की वृद्धि हुई है. रिपोर्ट में बढ़ती बेरोजगारी को भारत के लिए एक नई समस्या बताया गया है.
समग्र रोजगार की स्थिति पर कोई डेटा जारी नहीं
इन हालात से निपटने के लिए क्या सरकार ने पर्याप्त कदम उठाए हैं, इस पर अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर अमित बसोले ने बताया, "इन हालात पर सरकार के प्रदर्शन का मूल्यांकन करना थोड़ा मुश्किल है, विशेष रूप से 2015 के बाद क्योंकि उसके बाद से सरकार ने समग्र रोजगार की स्थिति पर कोई डेटा जारी नहीं किया है. सेंटर फॉर मॉनीटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) जैसे निजी स्रोतों के उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि नौकरियों का सृजन कमजोर ही बना रहेगा. सीएमआईई डेटा यह भी इंगित करता है कि नोटबंदी के परिणामस्वरूप नौकरियों में कमी आई है, सरकार ने इस पर भी कोई डेटा जारी नहीं किया है."
अंडर एंप्लॉयमेंट और कम मजदूरी
स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2018 की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में अंडर एंप्लॉयमेंट और कम मजदूरी की भी समस्या हैं. उच्च शिक्षा प्राप्त और युवाओं में बेरोजगारी 16 प्रतिशत तक पहुंच गई है. बेरोजगारी पूरे देश में हैं, लेकिन इससे सबसे ज्यादा प्रभावित देश के उत्तरी राज्य हैं.
और पढ़ें : मरीजों को railway में मुफ्त यात्रा की मिलती है सुविधा, जानें क्या हैं rules
नौकरी बाजार की प्रकृति बदल गई
अमित बसोले ने यह भी कहा कि भारत के नौकरी बाजार की प्रकृति बदल गई है क्योंकि बाजार में अब अधिक शिक्षित लोग आ चुके हैं, वह उपलब्ध किसी भी काम को करने के बजाय सही नौकरी की प्रतीक्षा करना पसंद करते हैं. उन्होंने कहा, "पिछले दशक में श्रम बाजार बदल गया है, विभिन्न डिग्रियों के अनुरूप रोजगार पैदा नहीं हुए हैं."
हालात को सामान्य बनाने के लिए किस तरह के कदम उठाए जाने चाहिए, इस सवाल पर रिपोर्ट के मुख्य लेखक ने बताया, "यह हालात को सामान्य बनाने का सवाल नहीं है. इसके बजाय, हमें एक उचित राष्ट्रीय रोजगार नीति विकसित करने की आवश्यकता है, जो केंद्र द्वारा आर्थिक नीति बनाने में नौकरियों का सृजन करेगी."
Source : IANS