सोने की ज्वैलरी (Gold Jewellery) खरीदने के नियम में सरकार कुछ बदलाव करने जा रही है. अगर यह नियम बदल गया तो ज्वैलरी इंडस्ट्री (Jewelry Industries) पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा, लेकिन ग्राहकों को इसका भरपूर फायदा मिलेगा. एक दिन पहले शुक्रवार को उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan, Cabinet Minister of Consumer Affairs) ने कहा कि वाणिज्य मंत्रालय ने सोने की ज्वैलरी के लिए BIS हॉलमार्किंग (BIS Hallmarking) को अनिवार्य बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ-WTO) को सूचित करने के बाद इसे लागू कर दिया जाएगा.
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डब्ल्यूटीओ (WTO) की ओर से तय नियमों के तहत इस मामले में पहले उसको सूचित करना होगा. इस पूरी प्रक्रिया में दो माह का समय और लग सकता है. सोने की हॉलमार्किंग उसकी शुद्धता का प्रमाण होती है. मौजूदा समय में इसे स्वैच्छिक आधार पर लागू किया गया है, जबकि WTO से मंजूरी मिल जाने के बाद इसे अनिवार्य कर दिया जाएगा.
अभी सोने के गहनों पर हॉलमार्किंग स्वैच्छिक है. इस नियम के लागू हो जाने के बाद सभी ज्वैलरों को इन्हें बेचने से पहले हॉलमार्किंग लेना अनिवार्य हो जाएगा. कई बार अनजान ग्राहकों को 22 कैरेट की बजाय 21 या अन्य अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों से कम कैरेट का सोना बेचा जाता है, जबकि कीमत अच्छी गुणवत्ता की वसूल ली जाती है. हॉलमार्किंग सही न होने पर पहले चरण में नोटिस जारी किया जाएगा. हॉलमार्किंग केंद्र खोलने के लिए स्वर्णकारों को 10,000 रुपये शुल्क देने होंगे. हॉलमार्किंग केंद्र पर सभी आभूषण पर 35 रुपये शुल्क देय होगा.
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भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के पास हॉलमार्किंग के प्रशासनिक अधिकार हैं. बीआईएस ने 14 कैरट, 18 कैरट और 22 कैरट के सोने के लिए हॉलमार्किंग के मानक तय किए हैं. हॉलमार्किंग से यह पता चल जाता है कि ज्वैलरी में कितना सोना लगा है और अन्य मेटल का अनुपात क्या है. अब नए नियमों के तहत हॉलमार्किंग अनिवार्य होगा और इसके लिए ज्वैलर्स को लाइसेंस लेना होगा. अभी देश में करीब 800 हॉलमार्किंग केंद्र हैं और सिर्फ 40 प्रतिशत आभूषणों की हॉलमार्किग की जाती है.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो