रूस-यूक्रेन युद्ध ने ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों को तेज कर दिया है, जो गुरुवार को 105 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई और उच्च मुद्रास्फीति के साथ भारत की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचने की संभावना है. इस समय भारत जो कच्चे तेल की अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत आयात करता है और पूरी तरह आयात पर निर्भर है. कच्चे तेल की कीमतों में किसी भी तरह की बढ़ोतरी का पेट्रोल और डीजल की घरेलू कीमतों पर बड़ा असर पड़ेगा. इसके अलावा, उच्च ईंधन लागत का व्यापक प्रभाव एक सामान्य मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति को गति देगा. पहले से ही खुदरा मुद्रास्फीति को दर्शाने वाला भारत का मुख्य मुद्रास्फीति गेज उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) जनवरी में भारतीय रिजर्व बैंक की लक्ष्य सीमा को पार कर चुका है.
खुदरा ईंधन की कीमतों में हो सकती है बढ़ोत्तरी
उद्योग की गणना के अनुसार कच्चे तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत की वृद्धि से सीपीआई मुद्रास्फीति में लगभग 10 आधार अंक जुड़ते हैं. इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के सीनियर एनालिस्ट भानु पाटनी ने कहा, कच्चे तेल की इतनी ऊंची कीमतों से खुदरा ईंधन की कीमतों में करीब 8-10 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी होगी और इससे महंगाई का दबाव बढ़ सकता है.
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यूक्रेन के चेर्नोबिल परमाणु संयत्र पर रूस का कब्जा
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा यूक्रेन में सैन्य अभियान शुरू किए जाने के बाद गुरुवार को ब्रेंट क्रूड 105 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया. साल 2014 के बाद यह पहला मौका है, जब कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गई हैं. रूसी सेना ने गुरुवार को चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र पर कब्जा कर लिया. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेन्स्की ने पहले ही इस बात की आशंका जताई थी.
HIGHLIGHTS
- 2014 के बाद फिर ब्रेंट क्रूड ऑयल प्रति बैरल 100 डॉलर पार
- भारत में खुदरा ईंधन की कीमतों में हो सकती है बढ़ोत्तरी
- भारत कच्चे तेल की 85 फीसद जरूरत के लिए आयात पर निर्भर