दिवाला कानून के समक्ष आने वाली चुनौतियों ने इस कानून को मजबूत बनाने में मदद की है. इससे जुड़े पक्षों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समय समय पर सुधारात्मक कदम उठाये गये जिससे कानून मजबूत होता चला गया. भारतीय दिवाला एवं रिण शोधन अक्षमता बोर्ड (Insolvency and Bankruptcy Board of India-IBBI) के प्रमुख एम एस साहू ने सोमवार को यह कहा.
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बैंकों के फंसे कर्ज के निदान के लिए IBC कानून लाया गया
बैंकों के फंसे कर्ज और दूसरी समस्याओं के त्वरित निदान के लिये दिवाला एवं रिणशोधन अक्षमता संहिता (IBC) कानून लागू किया गया. आईबीबीआई पर इस कानून के क्रियान्वयन जिम्मेदारी है. भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में साहू ने कहा कि इस कानून के प्रभाव को केवल इसके तहत आने वाली चीजों के ही संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि इसके ईद- गिर्द भी इसके प्रभाव हैं.
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कानून में बदलाव के लिए कई सुधारात्मक कदम उठाए गए
उन्होंने कहा कि ऐसे भी मौके आये हैं जब किसी कंपनी को दिवाला प्रक्रिया में लाये जाने से पहले ही बकाये का भुगतान कर दिया गया. साहू ने कहा कि इस कानून में जब जरूरत महसूस की गई तुरंत सुधारात्मक कदम उठाये गये. आईबीबीआई चेयरपर्सन ने कहा कि जो भी चुनौतियां सामने आईं इसके साथ कानून मजबूत होता चला गया है. आईबीसी कानून दिसंबर 2016 में लागू हुआ है और इसके तहत पहला समाधान प्रस्ताव अगस्त 2017 में मंजूर किया गया. लागू होने के बाद से कानून के कई पहलुओं को चुनौती दी गई. सरकार ने भी इसमें कई तरह के संशोधन किये. इनमें एक महत्वपूर्ण संशोधन यह भी हुआ कि दिवाला प्रक्रिया शुरू होने के बाद कंपनी के प्रवर्तक वापस कंपनी का नियंत्रण अपने हाथ में नहीं ले सकें.