Coronavirus (Covid-19): रेडिमेड गार्मेंट के एशिया के सबसे बड़े थोक बाजार के नाम से मशहूर दिल्ली के गांधीनगर मार्केट की दुकानें व फैक्टरियां अभी नहीं खुली हैं और आगे खुलने के बाद भी पहले की तरह काम-काज जल्द पटरी पर लौटने की उम्मीद कम है. मजदूर और कारीगर अपने घर लौटने की तैयारी में हैं. कपड़ा उद्योग (Textile Industry) से जुड़े कारोबारियों का कहना है कि कोरोना के चलते उनके सामने श्रम और पूंजी का संकट खड़ा हो गया है. देश की राजधानी स्थित गांधीनगर समेत पूरे दिल्ली-एनसीआर में कपड़े व परिधान की दुकानें व विनिर्माण इकाइयां बंद पड़ी हैं और और कमोबेश पूरे देश का कुछ ऐसा ही हाल है.
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केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की अवधि तीसरी बार बढ़ाई
कोरोनावायरस (Coronavirus Lockdown) के संक्रमण की कड़ी को तोड़ने के प्रभावी उपाय के तौर पर केंद्र सरकार ने हालांकि लॉकडाउन की अवधि तीसरी बार बढ़ा दी है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ नियंत्रण क्षेत्र के बाहर दुकानों व फैक्टरियों को खोलने की इजाजत दी है. मगर, कपड़ा व परिधान उद्योग में काम-काज सुचारु ढंग से होने की संभावना कम है, क्योंकि कारोबारियों के सामने वित्तीय संकट भी पैदा हो गया है. गांधीगनगर के कपड़ा कारोबारी हरीश ने कहा कि फिर से काम शुरू करने के लिए पूंजी की जरूरत है, क्योंकि पहले बिके माल का पेमेंट आ नहीं रहा और जो कुछ नकदी बची थी वह श्रमिकों की मजदूरी, फैक्टरी का किराया व अन्य जरूरतों में खर्च हो गई. उन्होंने कहा कि अब मजदूरों के घर वापसी के कारण एक और समस्या खड़ी हो गई है कि मजदूर के बिना आगे काम काज तो चल नहीं पाएगा.
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गांधीनगर के एक अन्य कपड़ा कारोबारी कैलाश अग्रवाल ने कहा कि लॉकडाउन के पहले जो ऑर्डर मिले थे सब कैंसल हो गए हैं और जो पहले का स्टॉक पड़ा है, उसके निकलने की भी गुंजाइश नहीं है, क्योंकि दुकानें बंद हैं. उन्होंने कहा कि वित्तीय संकट गहराता जा रहा है, क्योंकि बैंक का जो कर्ज है उस पर ब्याज लग रहा है और आमदनी ठप है. कान्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्टरी के पूर्व चेयरमैन संजय जैन का भी कहना है कि कपड़ा उद्योग मजदूरों के बिना नहीं चल सकता है, इसलिए मजदूरों के घर वापसी से कपड़ा उद्योग में दोबारा कामकाज पटरी पर लौटना मुश्किल है.
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कृषि के बाद कपड़ा उद्योग सबसे ज्यादा श्रमिकों को रोजगार देने वाला उद्योग
जैन ने कहा कि भारत का कपड़ा उद्योग कृषि के बाद सबसे ज्यादा श्रमिकों को रोजगार देने वाले उद्योग में शुमार है, जिसमें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है. उन्होंने कहा कि वस्त्र एवं परिधान की इस समय न तो घरेलू मांग है और न ही निर्यात मांग, क्योंकि कोरोना के कहर से पूरी दुनिया प्रभावित है. जैन ने कहा कि कपड़ा उद्योग इस समय गंभीर वित्तीय संकट में है और जब तक सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती है, इस उद्योग में कामकाज पटरी पर नहीं लौट पाएगा.
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कान्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्टरी के वर्तमान चेयरमैन टी. राजकुमार ने बताया कि जैसे-जैसे राज्य सरकारों की ओर से अनुमति मिल रही है वैसे-वैसे देश के कुछ हिस्सों में कपड़ा उद्योग में धीरे-धीरे काम शुरू होने की उम्मीद है, जैसे तमिलनाडु में छह मई से इजाजत मिल गई है. लॉकडाउन से कपड़ा उद्योग पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि देश के कपड़ा उद्योग को लॉकडाउन के दौरान रोजाना 5,000 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है. जैन ने बताया कि भारत के कपड़ा उद्योग का सालाना कारोबार तकरीबन 10 लाख करोड़ रुपये का है, जो इस समय वित्तीय संकट में है, लेकिन कोई मदद करने को तैयार नहीं है.