जी के शेयरों के पतन के बाद म्यूचुअल फंड्स (एमएफ्स) और एनबीएफसीज की नसों में पहले से ही सिहरन दौड़ रही है. इस बीच सोमवार को एक नया नाम सामने आया है, जो ताजा झटके देनेवाला है. कोलकाता की कंपनी इमामी लि. पर एमएफ्स का भारी-भरकम 2,000 करोड़ रुपये का कर्ज है, जो कंपनी के प्रमोटरों को इमामी के सूचीबद्ध शेयरों को गिरवी रखकर दिया गया था. इमामी समूह पर गैर-एमएफ्स कर्जदाताओं के भी शेयरों को गिरवी रखकर बड़ी रकम का कर्ज दिया गया (प्रतिभूतियों के बदले कर्ज) है. इमामी के प्रमोटरों की कंपनी में 72 फीसदी हिस्सेदारी है, जिसमें से आधा कर्ज के बदले गिरवी रखा हुआ है.
समस्या यह है कि इमामी के शेयरों की दैनिक ट्रेडिंग की मात्रा मुश्किल से 10-12 करोड़ रुपये है. इमामी के शेयर अपने उच्च स्तर से फिलहाल आधी कीमत पर हैं और आगे कभी भी भरभराकर गिर सकते हैं. साल 2015 में इमामी ने केश किंग का 1,684 करोड़ रुपये में अधिग्रहण किया था और इसके लिए 950 करोड़ रुपये शेयर गिरवी रखकर कर्ज के रूप में जुटाए थे. उसने केश किंग और संबंधित ब्रांड्स को एसबीएस बॉयोटेक से खरीदा था, जिस सौदे को विश्लेषकों ने उस वक्त काफी महंगा करार दिया था.
सोमवार को इंट्राडे कारोबार में कंपनी के शेयरों में 11 फीसदी गिरावट दर्ज की गई, जो कि चार सालों के न्यूनतम स्तर 336 रुपये प्रति शेयर रही, हालांकि बाद में कुछ सुधार देखा गया और चार फीसदी की गिरावट के साथ 368 रुपये प्रति शेयर की दर पर बंद हुए.
जैसा कि जी के मामले में हुआ था, एमएफ्स ने गिरवी रखे शेयरों को इसलिए नहीं बेचा था कि इससे शेयरों के दाम तेजी से गिर जाएंगे और मूल रकम की वसूली नहीं हो पाएगी. इससे यह सवाल उठ खड़ा होता है कि जब गिरवी रखे शेयरों को भुनाकर कर्ज की वसूली नहीं की जा सकती तो एमएफ्स ने क्या सोचकर इतनी भारी-भरकम रकम का कर्ज शेयरों को गिरवी रखकर दिया.
इसके अलावा अपोलो हॉस्पिटल के शेयरों की कीमत में सोमवार को कारोबार में 11 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. यह कंपनी के शेयरों में पिछले सात सालों में किसी एक दिन हुई सबसे बड़ी गिरावट है, जिससे निवेशक घबराए हुए हैं. कंपनी में प्रमोटरों की 34 फीसदी हिस्सेदारी है और उन्होंने अपने करीब 75 फीसदी शेयर गिरवी रखे हैं, जिससे निवेशक समुदाय में भय का माहौल है.
सोमवार को कंपनी के शेयरों में आई भारी गिरावट के पीछे मद्रास उच्च न्यायालय का अपोलो की उस याचिका पर अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार करना है, जिसमें मांग की गई थी कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता को 2016 में उनकी मृत्यु से पहले अपोलो अस्पताल में किए गए इलाज की शुद्धता और पर्याप्तता को देखने के लिए एक जांच आयोग के गठन पर रोक लगाई जाए.
Source : IANS