देश की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी (LIC) शेयर बाजार में लिस्ट होने जा रही है. इसकी बिडिंग डेट 4 मई से 9 मई के बीच रखी गई है. इससे LIC के IPO आने से जहां निवेशकों में उत्साह है. वहीं, कंपनी के कर्मचारी इसका विरोध कर रहे हैं. इस वक्त LIC 6 लाख करोड़ रुपए की कंपनी है. केंद्र सरकार विनिवेश की इस प्रक्रिया के जरिए 3.5% हिस्सेदारी बेचकर 21,000 करोड़ रुपए जुटाना चाहती है. ऐसे में सवाल पैदा होता है कि आखिर कैसे एक 5 करोड़ की कंपनी 6 लाख करोड़ रुपए की कंपनी बन गई. आइए हम आपको बताते हैं कि कैसे 65 वर्षों के दौरान एलआईसी 5 करोड़ से 6 लाख करोड़ की कंपनी बन गई.
245 कंपनियों को मिलाकर 1956 में बनाई गई LIC
अब से ठीक 66 वर्ष पहले 1956 में LIC की नींव रखी गई थी. जिस वक्त एलआईसी की नींव रखी गई थी, तब भारत में एक भी सरकारी कंपनी एस क्षेत्र में काम नहीं करती है. तब भारत में 154 निजी इंश्योरेंस कंपनियां और 16 विदेशी कंपनियों के साथ ही 75 प्रोविडेंट कंपनियां काम करती थीं. देश में लोगों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक सितंबर 1956 को सरकार ने इन सभी 245 कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने के साथ ही भारतीय जीवन बीमा निगम, यानी LIC की नींव रखी गई थी. इन कंपनियों के अधिग्रहण के लिए तत्कालीन सरकार ने उस वक्त इसके लिए 5 करोड़ रुपए जारी किए थे.
50 लाख पॉलिसियों से शुरू हुआ सफर
1956 में LIC के 5 जोनल, 33 डिवीजनल, 212 ब्रांच ऑफिस और एक कॉर्पोरेट ऑफिस था. कंपनी ने अपनी स्थापना के मात्र एक वर्ष में 200 करोड़ का बिजनेस किया. इस भरोसे के पीछे एक बड़ी वजह सरकार की गारंटी थी. निजी कंपनियों के अधिग्रहण की वजह से उस समय LIC के पास 50 लाख पॉलिसियां थीं और करीब 27 हजार कर्मचारी थे. इस वक्त LIC में 1.2 लाख कर्मचारी है और करीब 30 करोड़ बीमा पॉलिसियां चल रही है. 1956 में LIC के 5 जोनल , 33 डिविजनल और 209 ब्रांच ऑफिस थे, जोकि अब बढ़कर 8 जोनल ऑफिस, 113 डिविजनल ऑफिस और 2048 पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड ब्रांच इस वक्त हैं. इतना ही नहीं कंपनी के 1381 सैटेलाइट ऑफिस भी काम कर रहे हैं. कुल 1957 तक LIC का कुल बिजनेस करीब 200 करोड़ रुपए था, जो आज यह 5.60 लाख करोड़ हो चुका है.
इससे पहले भारतीयों का नहीं होता था बीमा
गौरतलब है कि 1818 में पहली बार भारतीय सरजमीं पर बीमा कंपनी शुरू हुई थी. भारत की इस पहली बीमा कंपनी का नाम ओरिएंटल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी थी. खास बात ये है कि ये कंपनी सिर्फ अंग्रेजों का ही जीवन बीमा करती थी. कालांतर में बाबू मुत्तीलाल सील जैसे कुछ माटी पुत्रों के प्रयासों से भारतीयों का भी बीमा होने लगा. हालांकि, उनके लिए रेट अलग थे. गौरतलब है कि 1870 में जब पहली भारतीय लाइफ इंश्योरेंस कंपनी शुरू हुई तब जाकर भारतीयों को बराबरी का हक मिला. इसके बाद देखते ही देखते भारत में जीवन बीमा कंपनियों की बाढ़ सी आ गई.
उदारीकरण में भी बरकरार रहा LIC दबदबा
1990 के उदारीकरण से पहले भारत में ज्यादातर कंपनियों पर सरकार के अधिकार क्षेत्र में थी. उदारीकरण के बाद 1991 से धीरे-धीरे सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में विनिवेश किया जाने लगा. लेकिन अब से पहले की सरकारों ने LIC को नहीं छेड़ा. देश में उदारीकरण के बाद कई प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियां इस फील्ड में आई. लेकिन एलआईसी का दबदबा बना रहा. इस वक्त एलआईसी तकरीबन 36 लाख करोड़ की संपत्ति का प्रबंधन करती है.
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देश की 5वीं बड़ी कंपनी होगी LIC
बाजार के खराब हालात के कारण इश्यू साइज में लगभग 60 फीसदी की कटौती के बाद भारत के सबसे बड़े IPO के लिए 902-949 रुपये का प्राइस बैंड तय किया गया है. गौरतलब है कि इतने बड़े मार्केट शेयर वाली एलआईसी एकमात्र भारतीय पीएसयू है. बीते साल के 6 करोड़ रुपये की तुलना में चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में एलआईसी को 1,437 करोड़ रुपये का नेट प्रॉफिट हुआ, जो मुख्य रूप से इन्वेस्टमेंट से हुई आय से संभव हुआ.
HIGHLIGHTS
- 3.5% हिस्सेदारी बेचकर 21,000 करोड़ रुपए जुटाना चाहती है सरकार
- 245 कंपनियों को मिलाकर 1956 में रखी गई थी LIC की बुनियाद
- भारत की सबसे सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी बन चुकी हा LIC