दिल के मरीज़ो को जीवनरक्षक स्टेंट लगा कर ठगने पर अब जल्द ही लगाम लगेगी। नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग एथॉरिटी यानि एनपीपीए ने अस्पतालों को निर्देश देते हुए कहा है कि सभी अस्पताल स्टेंट की कीमतों को अपनी वेबसाइट पर डालें।
एनपीपीए ने अस्पतालों से कहा है कि वो अपनी वेबसाइट पर स्टेंट की ख़ासियत भी बताएं। किस ब्रांड का स्टेंट लगाया जा रहा है स्टेंट किस कंपनी का है, ब्रांड क्या है इन सभी जानकारियों को वेबसाइट पर डालें।
एनपीपीए ने इसके लिए अस्पतालों को तीन दिन का वक्त दिया है। एनपीपीए ने इंपोर्टर्स को भी आदेश दिया है कि वह भी अपनी वेबसाइट पर स्टेंट की एमआरपी डालें और वह भी अगले 3 दिनों में।
इससे पहले 14 फरवरी यानि वैलेंटाइन डे पर सरकार ने दिल के मरीजों को तोहफा देते हुए स्टेंट की कीमतें तय कर दी थी। एनपीपीए ने मेटल स्टेंट की कीमत घटाकर 7260 रुपये कर दी थी जबकि बायोडिग्रेडेबल स्टेंट की कीमत 29600 रुपये फिक्स कर दी थी।
एनपीपीए दरअसल नेशनल फॉर्मास्यूटिकल प्राइसिंग एथॉरिटी है। इसका काम देश में दवाओं की कीमतों पर निगरानी रखना है।
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स्टेंट का क्या काम है-
स्टेंट एक स्प्रिंग की तरह का छल्ला होता है ऑपरेशन (एंजीयोप्लास्टि) के ज़रिए दिल की धमनियों में उस जगह पर लगाया जाता है जहां कोलेस्ट्रॉल जमने की वजह से खून का प्रवाह रुकता है। एंजियोप्लास्टी में एक पतली ट्यूब कैथेटर से इसे हाथ पैर की बड़ी धमनियों की मदद से दिल की पतली धमनियों तक पहुंचाया जाता है।
स्टंट कई तरीके के होते हैं-
दरअसल स्टेंट कई तरह के होते हैं मसलन मेटल स्टेंट, ड्रग इल्युटिंग स्टेंट और बॉयोरिज़ॉर्बेबल स्टेंट। सरकार ने दोनों ड्रग इल्युटिंग स्टेंट और बॉयोरिज़ॉर्बेबल स्टेंट की कीमत 30000 रुपये तय कर दी है।
जबकि मेटल स्टेंट की कीमत 7500 रुपये तय कर दी है। अब तक ड्रग इल्युटिंग स्टेंट पहले के लिए आप 24 हज़ार से 1.5 रुपये तक की कीमत चुकाते थे जबकि बॉयोरिज़ॉर्बेबल स्टेंट के लिए आपने 1.70 लाख से 2.90 लाख रुपये तक चुकाए होंगे।
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इस फैसले के पीछे क्या कारण थे-
दरअसल वीरेंद्र सांगवान नाम के एक वकील ने स्टेंट की ठगी के खिलाफ मुहिम शुरू की थी। उन्होने 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट में इस मुद्दे पर एक याचिका दायर की थी। उन्होंने अपनी ही तरफ से इस मामले में पड़ताल की तो पाया कि सरकार स्टेंट की कीमतों को रेग्युलेट ही नहीं करती है।
जिसके चलते अस्पताल मनमानी कीमत चार्ज करते थे क्योंकि अक्सर स्टेंट के पैकेट पर भी कीमत नहीं लिखी होती थी। इस मसले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि स्टेंट कीमतें घटाने के लिए कदम उठाए जाएं। लेकिन सरकार सोई रही।
दो साल बाद फिर इस मामलें में कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की गई । इसका भी सरकार पर कोई असर नहीं हुआ और फिर तीसरी याचिका दिसंबर 2016 में दायर की गई जिसके बाद सरकार की आंख खुली और स्टेंट की कीमतें घटाई गई।
एक आंकड़ें के मुताबिक भारत में साल 2016 में 6 लाख स्टेंट ह्दय रोगियों को लगाए गए। वहीं इनमें से भारत समेत अमेरिका तक में 25-30% ऐसे दिल के मरीजों को स्टेंट लगाया गया जिसकी ज़रुरत नहीं थी। वो सामान्य दवा खाकर भी ठीक हो सकते थे।
अमरीका में भी स्टेंट की गाईडलाइन्स हैं-
अमेरिका में भी साल 2009 में दिल के डॉक्टर्स ने स्टेंट लगाने की एक गाइडलाइन बनाई थी। हालांकि इससे बिना ज़रुरत स्टेंट लगाने के मामले बंद तो नहीं हुए लेकिन तस्वीर ज़रुर बदली है। अमेरिकी डॉक्टर्स के स्टेंट लगाने की गाइडलाइन से इसके आंकड़ें में गिरावट आई है।
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Source : Shivani Bansal