देश में महंगाई की दर कम हुई है. 59 महीने के बाद यह खुशखबरी सामने आई है. जुलाई में खुदरा महंगाई दर चार फीसदी के नीचे आ गई है. यह आखिरी बार अगस्त 2019 में चार फीसदी दर नीचे आई थी. सरकार की ओर से सोमवार को जारी आंकड़े के अनुसार, जुलाई में खुदरा महंगाई दर 3.54% तक पहुंच गई है. इससे पहले जून में ये 5.08 प्रतिशत तक पहुंच गई थी. खाद्य महंगाई दर भी 9.36 प्रतिशत से घटकर 5.42% पहुंच गई है. खाने-पीने के सामनों की कीमतों के घटने के कारण महंगाई से राहत मिली है.
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार, एक साल पहले जुलाई में खुदरा महंगाई दर 7.44% तक थी. खाद्य महंगाई दर 11.51 प्रतिशत तक पहुंची. सरकार के अनुसार, कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) पर खुदरा महंगाई दर में कमी देखने को मिला है. शहरी क्षेत्र में महंगाई दर जून में 4.39 प्रतिशत तक थी. यह जुलाई में घटकर 2.98 प्रतिशत तक पहुंची. वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई दर जून में 5.66 प्रतिशत तक पहुंची. ये जुलाई में घटी और 4.10% पर आ गई.
महंगाई घटने के कारण
महंगाई घटना-बढ़ना एक गणित की तरह है. यह बढ़ने का कारण खाने-पीने की चीजे होती हैं. खाद्य महंगाई दर जून की तुलना में जुलाई में करीब आधी हो गई. इस वजह से महंगाई दर में बड़ी कमी देखने को मिली है.
अन्य महीनों के आंकड़े जांचे तो जुलाई 2023 में खाद्य महंगाई दर 11.51% थी. इस वर्ष जुलाई में ये घटकर 5.42 प्रतिशत रह गई. वहीं जून में ये 9.36 प्रतिशत थी. सब्जियों की बात की जाए तो महंगाई दर जुलाई में 6.83% हो गई. वहीं जून में ये 29.32 प्रतिशत थी. इस तरह से अनाज की महंगाई पर असर देखा गया. ये दर 8.75% से घटकर 8.14% तक पहुंच गई. इसी तरह से दालों की महंगाई दर 16.07% से घटके 14.77 प्रतिशत पर पहुंच गई. इस तरह फलों की महंगाई दर पर असर हुआ है. यह 7.15% से कम होकर 3.84 प्रतिशत तक पहुंच गई है.
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महंगाई दर के मायने क्या?
महंगाई दर का अर्थ है कि किसी सामान या सेवा की वक्त के साथ कीमत बढ़ना है. इसे महीने और साल के हिसाब से तय किया जाता है. जैसे कोई चीज वर्ष भर पहले 100 रुपये की थी. मगर अब ये 105 रुपये तक हो गई. ऐसे में हिसाब लगाया जाए तो सालाना महंगाई दर 5 फीसदी हो गई. महंगाई दर के बढ़ने से सबसे अधिक नुकसान मुद्रा का होता है. इससे मुद्रा का मोल कम हो जाता है. जो चीज आप पहले 105 रुपये में खरीदते थे, वो सालभर पहले 100 रुपये में मिल जाती थी. अभी महंगाई दर का आकलन 2012 को मानकर किया जाता है. इस तरह से आंकड़े जुटाए जाते हैं कि 2012 में जो चीज 100 रुपये में आप खरीद सकते थे, आज वही खरीदने को लेकर आपको कितना खर्च करना होगा.