बाजार नियामक सेबी (SEBI) के तरजीही शेयर (Share) जारी करने के नियमों में कई संशोधन करने के बाद वित्तीय दबाव में पड़ी कंपनियों के प्रवर्तकों के लिए निवेशकों को जुटाना और शेयर की सही कीमत तय करने में सहूलियत होगी. शेयर बाजार (Share Market) विशेषज्ञों का कहना है कि नए दिशानिर्देशों से प्रवर्तकों और प्रवर्तक समूहों को निवेशक आकर्षित करने में आसानी होगी और उन्हें दिवाला संहिता की प्रक्रिया की तरह पूरी तहर कंपनी से निर्वासित भी नहीं होना पड़ेगा.
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संशोधनों से कंपनी पर नियंत्रण को खोए बिना प्रवर्तकों को वित्तीय निवेशकों को लाने में मदद मिल सकती है. यहां तक कि अगर उन्हें कोई ऐसे निवेशक मिलते हैं जो नियंत्रण रखना चाहते हैं, तो भी कंपनी में प्रवर्तकों की भूमिका कम भले हो लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होगी. विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसे लचीलेपन के कारण प्रवर्तक इन दिशानिर्देशों के माध्यम से पुनर्गठन करना पसंद कर सकते हैं क्योंकि ये आईबीसी के मुकाबले बेहतर और तेज विकल्प है. सेबी ने अपने 22 जून के दिशानिर्देशों में मूल्य निर्धारण में ढील दी थी और तनावग्रस्त सूचीबद्ध कंपनियों के तरजीही आवंटन के माध्यम से धन जुटाने में सक्षम बनाने का रास्ता साफ किया था.
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सेबी ने यह सुनिश्चित किया कि तनावग्रस्त कंपनियों द्वारा इन दिशानिर्देशों का आसानी से लाभ उठाया जा सके और इसके लिए तनावग्रस्त कंपनी की अर्हता पाने के लिए स्पष्ट मानदंड निर्धारित किए गए. ये दिशानिर्देश उन कंपनियों के लिए तरजीही निर्गम के जरिए धन जुटाने को आसान बनाते हैं, जो वास्तव में तनावग्रस्त हैं, लेकिन आईबीसी ढांचे के तहत नहीं गए हैं. विशेषज्ञों ने कहा कि कई कंपनियां आईबीसी ढांचे के बाहर पुनर्गठन करना पसंद करती हैं, विशेष रूप से देरी, संबद्ध मुकदमों, एनसीएलटी में मामलों का निपटान आदि कारणों के चलते. अभी तक करीब 270 से अधिक सूचीबद्ध कंपनियों को ऋण साधनों को ‘डी’ रेटिंग दी गई है, इसलिए उन्हें तनावग्रस्त माना जा सकता है. इनमें से कई कंपनियां आवश्यक शर्तों को पूरा करने के बाद लाभान्वित हो सकती हैं.