Share Market Update News: किसी कंपनी को जब अपना विस्तार करना होता है और उसके लिए पैसे चाहिए होते हैं तो उसके पास पैसा बनाने के कई विकल्प होते हैं. उन्हीं विकल्पों में से एक होता है, अपनी हिस्सेदारी को लोगों में बांटना. इसके साथ कंपनी आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) निकालती है. आप कंपनी को पैसे देकर इन आईपीओ (कंपनी में हिस्सेदारी) को कंपनी से सीधा खरीद सकते हैं. इसके साथ ही कंपनी के ये शेयर आप कभी भी और किसी को भी बेच सकते हैं.
क्या होता है प्राइमरी और सेकेंड्री मार्केट
लेकिन जब कंपनी शेयर बेच रही थी, तब अगर आप उनको नहीं खरीद पाए और अब आप उन्हें खरीदना चाहते हैं तो आप किसी और से ये शेयर खरीद सकते हैं. आईपीओ के अलावा आप एक बार भी न तो कंपनी से शेयर खरीदते हैं और न ही कंपनी को बेचते हैं. आप तो किसी ओर से शेयर खरीद रहे हैं और किसी और को ही शेयर बेच रहे हैं. यहां आप सेकेंड हैंड शेयरों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं. इसलिए जहां आईपीओ से शेयरों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं, उसे प्राइमरी और जहां सेकेंड हैंड शेयरों की बिक्री-खरीद हो रही है, उसे सेकेन्ड्री मार्केट कहा जाता है. आप जो रोजना शेयर मार्केट की खबरें सुनते हैं, वो वास्तव में एक सेकेन्ड्री मार्केट है.
ऐसे घटते बढ़ते है शेयरों के दाम
शेयर मार्केट में भी डिमांड व सप्लाई के हिसाब से दामों का घटना बढ़ना होता है. अगर किसी कंपनी के शेयरों की डिमांड ज्यादा होगी तो उसके शेयरों के दाम बढ़ते चले जाएंगे और मांग घटती है तो दाम घटते चले जाएंगे. इस शेयरों की डिमांड कंपनी की परफोर्मेंस के हिसाब से घटती-बढ़ती रहती है. उदाहरण के तौर पर कंपनी ने अगर कोई में कोई ऐसी चीज बनाई है, जिसकी मांग आगे चलकर बढ़ने वाली है तो उसके शेयरों की डिमांड बढ़ती चली जाएगी. कोरोना काल के दौरान बिल्कुल ऐसा ही हुआ. कोरोना महामारी में फार्मा कंपनी के साथ ऐसा ही हुआ, क्योंकि टीका बनाने की तैयारी चल रही थी और सबको पता था कि टीका जब भी आएगा, उसकी मांग में बड़ा उछाल आएगा. इसके विपरीत कोई कंपनी अगर घाटे में जा रही या उसका कोई विवाद चल रहा है तो उसके शेयरों की डिमांड कम होगी.
शेयर मार्केट में पैसा लगाने वाले तीन तरह के निवेशक होते हैं-
1- इंवेस्टर्स- ये एक या कई कंपनियों के शेयर खरीदकर, लंबे समय तक उन शेयरों को अपने पास रखते हैं. इनको बाजार में समय-समय पर होने वाले उतार चढ़ाव से कोई फर्क नहीं पड़ता. वो धीरे-धीरे अपना निवेश पढ़ाते रहते हैं. पांच या दस साल बीत जाने के बाद ये पैसा निकालते हैं. इस तरह की ट्रेडिंग को वेल्थ मैनेजमेंट कहा जाता है.
2- स्विंग ट्रेडर्स- ऐसे निवेशक कुछ महीनों या कुछ दिनों के लिए किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं और उम्मीद के हिसाब से फायदा या नुकसान देखकर पैसा निकालते हैं. इस तरह की ट्रेडिंग में रिस्क ज्यादा होता है, लेकिन रिटर्न भी उसी हिसाब से मिलता है.
3- इंट्राडे ट्रेडर्स- ऐसे ट्रेडर्स रोजाना शेयर खरीदते हैं और रोजाना शेयर बेचते हैं. ऐसे ट्रेडर्स को गैंबलर भी कहा जाता सकता है. ये एक दिन के हिसाब से पैसा कमाते हैं और लाखों की रकम कमा या गंवा सकते हैं.
क्या है इनसाइडर ट्रेडिंग-
जब किसी व्यक्ति या संस्था के पास किसी कंपनी से जुड़ी यूपीएसआई (अनपब्लिशड प्राइज इंफोर्मेशन) होती है. ऐसे में उसके द्वारा की गई ट्रेडिंग को इनसाइडर ट्रेडिंग कहा जाता है. यूपीएसआई का मतलब कंपनी के शेयरों के बारे में ऐसी बहुत ही संवेदनशील जानकारी जो अभी तक पब्लिशड नहीं हुई है. मतबल सेबी और मीडिया को रिपोर्ट नहीं हुई है. यूपीएसआई का एक्सेस रखने वाले व्यक्ति को इनसाइडर ट्रेडर मान लिया जाता है, जैसे कि कंपनी के कर्मचारी या कंपनी के प्रमोटर्स. ऐसा ज्यादातर इंट्राडे ट्रेडिंग में होता है. आपको बता दें कि हर बड़ी कंपनी को अपने तिमाही रिजल्ट या कोई भी बड़ी जानकारी सेबी को रिपोर्ट करना होता है.