कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO): निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों की सैलरी का कुछ हिस्सा प्रॉविडेंड फंड (Provident Fund) और पेंशन (Pension) के रूप में कटता है. नौकरी करते समय लोगों के मन में यह सवाल उठता रहता है कि उन्हें पेंशन के रूप में कितना पैसा मिलेगा. आज की इस रिपोर्ट में आपको मिलने वाले पेंशन की गणना के बारे जांच पड़ताल करने की कोशिश करेंगे.
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बता दें कि EPFO के दायरे में आने वाले कर्मचारियों के मूल वेतन (मूल वेतन+महंगाई भत्ता) का 12 फीसदी प्रॉविडेंट फंड में जाता है और कंपनी भी इतना ही योगदान करती है. वहीं कंपनी द्वारा किए जाने वाले योगदान में से 8.33 फीसदी हिस्सा एंप्लायी पेंशन स्कीम (Employee Pension Scheme-EPS) में जाता है. साथ ही केंद्र सरकार भी EPS में मूल वेतन का 1.16 फीसदी योगदान करता है.
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कैसे होती है EPFO पेंशन की गणना
जानकारी के मुताबिक 16 नवंबर 1995 के बाद जो भी व्यक्ति नौकरी में आया है. पिछले 60 महीने की सेवा की अवधि के दौरान लिए गए औसत मासिक वेतन के रूप में ईपीएस की गणना की जाती है. बता दें कि पेंशन योग्य वेतन प्रति माह 15 हजार रुपये तक सीमित है. मासिक पेंशन=(पेंशन योग्य वेतन * पेंशन योग्य सेवा) / 70. अगर कोई व्यक्ति 58 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होता है और 20 साल या उससे ज्यादा का समय पूरा कर लेता है तो उस व्यक्ति को बतौर पेंशन सेवा 2 बोनस अतिरिक्त साल मिलेंगे.
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EPS क्या है और इसमें कैसे बढ़ा सकते हैं योगदान
EPFO नियमों के मुताबिक कंपनी को कर्मचारी की बेसिक सैलरी का 12 फीसदी हिस्सा EPF में रखना पड़ता है और हिस्से में से 8.33 फीसदी EPS में चला जाता है. नियमों के तहत EPF की अधिकतम सैलरी 15 हजार रुपये तय की गई है. इसके अलावा ईपीएस में अधिकतम 1,250 रुपये प्रति महीने का योगदान किया जाता है. कर्मचारियों को ईपीएस को बढ़ाने के लिए नियोक्ता के सहमति पत्र के साथ EPFO के पास आवेदन करना पड़ता है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब EPS में अधिक योगदान के लिए इजाजत देना जरूरी हो गया है.