फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit) को बैंकों (Banks) और गैर-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों यानि NBFC के द्वारा ऑफर किया जाने वाला सुरक्षित निवेश (Safe Investment) का एक प्रमुख साधन माना जाता है. निवेशकों को FD के जरिए सेविंग अकाउंट के मुकाबले अधिक रिटर्न मिलता है. फिक्स्ड डिपॉजिट में निश्चित अवधि के लिए एकमुश्त रकम जमा करके ब्याज के तौर पर रिटर्न (Bumper Return) हासिल किया जा सकता है. यहां आपको बता दें कि FD के तय नियमों के अनुसार परिपक्वता (Maturity) से पहले जमा किए गए रकम को नहीं निकाला जा सकता. हालांकि कुछ जुर्माना अदा करके जमा की गई राशि को पहले भी निकाल सकते हैं.
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निवेश करने के समय ही पता चल जाता है कि पैसा बढ़कर कितना होगा
मौजूदा समय में निवेशकों के बीच FD परंपरागत निवेश के तौर पर काफी लोकप्रिय है. निवेशक पूंजी को फिक्स्ड डिपॉजिट करके ब्याज के रूप में अच्छा रिटर्न हासिल कर सकते हैं. आयकर अधिनियम 1961 के मुताबिक फिक्स्ड डिपॉजिट से मिलने वाले ब्याज के ऊपर टैक्स देना पड़ता है. एफडी की सबसे खास बात यह है कि इसमें पैसा निवेश करने के समय ही निवेशकों को पता चल जाता है कि उनका पैसा बढ़कर कितना होने जा रहा है.
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फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) के नुकसान
जानकार कहते हैं कि निवेशकों को 7 दिन से 10 साल की अवधि के लिए FD खोलने का विकल्प मिलता है. फिक्स्ड डिपॉजिट को बैंक और डाक विभाग में खोला जा सकता है. निवेशकों के पास कॉर्पोरेट फिक्स्ड डिपॉजिट में भी इनवेस्टमेंट का विकल्प है. निवेशकों को FD में निवेश से फिक्स्ड रिटर्न तो मिलता है लेकिन यह म्यूचुअल फंड के मुकाबले काफी कम होता है. दरअसल, म्यूचुअल फंड शेयर मार्केट से जुड़ा होता है जिसकी वजह से बाजार में तेजी के समय निवेशकों को कई गुना तक रिटर्न मिलते हैं.
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जानकार कहते हैं कि FD में निवेश से सबसे बड़ा नुकसान है इसके ऊपर मिलने वाले ब्याज में लगातार कटौती होना..इसके अलावा यह महंगाई से लड़ाई में भी कारगर नहीं है. इन सबके बावजूद अगर आप बगैर किसी टेंशन के अपने पैसे को सुरक्षित रखते हुए उसे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं तो फिक्स्ड डिपॉजिट से बेहतर और कोई ज़रिया नहीं हो सकता है.