हेल्थ इंश्योरेंस (Health Insurance) पॉलिसी लेने वाले लाखों लोगों के लिए खुशखबरी है. दरअसल, बीमा कंपनियां (Insurance Companies) मानसिक रोग, उम्र संबंधी बीमारी, जन्मजात बीमारी आदि बीमारी को अब हेल्थ कवर (Health Cover) से बाहर नहीं रख पाएंगी. बीमा नियामक इंश्योरेंस एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (IRDA) के ताजा फैसले से लाखों हेल्थ इंश्योरेंस होल्डर्स को बहुत फायदा होने जा रहा है. IRDA का कहना है कि कैटेरेक्ट सर्जरी, नी कैप रिप्लेसमेंट, अल्जाइमर और पार्किंसन्स जैसी गंभीर बीमारियों (Critical Illness) को भी अब इंश्योरेंस कंपनियों को कवर करना होगा.
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वेटिंग पीरिएड के खत्म होने के बाद देना होगा कवर
नए फैसले के तहत फैक्टरियों में काम करने वाले, खतरनाक रसायनों के साथ काम करने वाले कर्मचारी जिनके स्वास्थ्य पर इसका काफी खराब असर पड़ता है. उन्हें भी अब कंपनियां इलाज से इनकार नहीं कर पाएंगी. IRDA ने बीमारियों को दायरे से बाहर करने के लिए अब मानकीकरण कर दिया है.
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मतलब ये है कि अब अगर कोई इंश्योरेंस कंपनी किसी गंभीर बीमारी जैसे HIV एड्स, किडनी की बीमारी या अन्य कोई भी अन्य बीमारी को कवर नहीं करना चाहती है तो कंपनी को उसके लिए एक खास शब्द का प्रयोग करना होगा. उसके लिए भी कंपनी को वेटिंग पीरिएड (30 दिन से 1 साल) रखना होगा. हालांकि वेटिंग पीरिएड खत्म होने के बाद कंपनी को कवर देना होगा.
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बजाज आलियांज जनरल इश्योरंस के चीफ (रिटेल अंडरराइटिंग) गुरदीप सिंह बत्रा का कहना है कि मेडिकल ट्रीटमेंट के विकास के साथ ही नई-नई बीमारियां भी सामने आ रही हैं. बीमा कंपनियां अब उन बीमारियों को भी कवर कर पाएंगी. हालांकि जहां यह कदम आम आदमी के लिए अच्छा माना जा रहा है. वहीं दूसरी ओर TPA और ब्रोकर्स इस फैसले पर संदेह जता रहे हैं.
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उनका कहना है कि यह फैसला आम आदमी के लिए भले ही अच्छा हो लेकिन भविष्य में देखना पड़ेगा कि प्रीमियम में कितना बदलाव आता है. बता दें कि नवंबर 2018 में वर्किंग कमेटी ने IRDA को सौंपी रिपोर्ट में कहा गया था कि इंश्योरेंस कंपनियां अल्जाइमर, पार्किंसन्स, एचआईवी या एड्स जैसी बीमारी को कवर से बाहर नहीं कर सकतीं हैं.