बचत (Saving) के मामले में भारत एक निश्चित आय (Fixed Income) वालों का देश माना जाता रहा है. भारत में करोड़ों लोग बैंक FD, पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF), पोस्ट ऑफिस डिपॉजिट (Post Office Deposit) आदि छोटी बचत योजनाओं में निवेश करते हैं. वहीं लोगों द्वारा जमा किया पैसा सरकार और कंपनियों के पास पहुंचता है. ऐसे में ब्याज दरें कम होने की वजह से बचतकर्ताओं के ऊपर काफी असर पड़ता है.
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महंगाई के मुकाबले 2 या 3 फीसदी ज्यादा रिटर्न की जरूरत
बचतकर्ताओं को CPI के मुकाबले कम से कम 2 या 3 फीसदी ज्यादा रिटर्न की जरूरत होती है. जानकारों का कहना है कि कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड (Conservative Hybrid Fund) में 3 से 5 साल या उससे ज्यादा अवधि के लिए निवेश करके महंगाई से लड़ा जा सकता है. बता दें कि बुजुर्ग निवेशकों को इक्विटी में अविश्वास की वजह से काफी दिक्कत होती है. एक्सपर्ट का कहना है कि बुजुर्ग निवेशकों को अपने दिमाग में निवेश की वैल्यू में उतार-चढ़ाव को लेकर मनोवैज्ञानिक दीवार से पार पाना आसान नहीं होता है.
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जानकारों का कहना है कि ELSS में लगातार निवेश करने वालों को मार्केट में उतार-चढ़ाव की आदत हो जाती है. दरअसल, इन निवेशकों को इस निवेश से पता चलता है कि इक्विटी फंड में भले ही निवेश किया गया हो और फंड में उतार-चढ़ाव हो रहा हो, लेकिन अंत में रिटर्न काफी अच्छा होता है. एक उम्र के बाद इस बात को सीखने में काफी परेशानी होती है. हालांकि फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट में निवेश करने वाले निवेशकों को म्यूचुअल फंड में निवेश करने वालों से यह सीख मिलती है कि टैक्स की बचत भी काफी मायने रखती है.
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निवेशकों को म्यूचुअल फंड में निवेश करने से रिटर्न के साथ ही दूसरे तरह के फायदे भी मिलते हैं. बता दें कि फिक्स्ड डिपॉजिट से प्राप्त रकम ब्याज आय मानी जाती है, जबकि म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) से मिलने वाला रिटर्न कैपिटल गेन (Capital Gain) माना जाता है. ब्याज आय के ऊपर हर साल टैक्स का भुगतान करना होगा. मान लीजिए कि अगर सभी बैंक अकाउंट और डिपॉजिट से हासिल ब्याज आय 10 हजार रुपये सालाना से अधिक होती है तो बैंक उस ब्याज आय के ऊपर 10 फीसदी की दर से टीडीएस (TDS) काट लेता है. वहीं अगर बैंक में PAN नहीं दिया है तो TDS 20 फीसदी कटेगा.
Source : News Nation Bureau