हमारे देश में सर्वाधिक धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहार दिवाली की शुरुआत धनतेरस से हो जाती है. धनतेरस छोटी दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है. इस दिन कोई भी समान लेना बहुत ही शुभ माना जाता है. धनतेरस पूजा को धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है.
धनतेरस का दिन धन्वंतरि त्रयोदशी या धन्वंतरि जयंती भी कहलाता है. धन्वंतरि आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं. इस दिन गणेश-लक्ष्मी को घर लाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन कोई किसी को उधार नहीं देता. है. इसलिए सभी वस्तुएं नगद में खरीदकर लाई जाती हैं. इस दिन लक्ष्मी और कुबेर की पूजा के साथ-साथ यमराज की भी पूजा की जाती है.
पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है. यह पूजा दिन में नहीं की जाती, अपितु रात होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है.
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धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है. अगर संभव न हो तो कोई बर्तन खरीदें. इसका यह कारण माना जाता है कि चांदी चंद्रमा का प्रतीक है, जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है. संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है. जिसके पास संतोष है, वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है.
धार्मिक और ऐतिहासिक ²ष्टि से भी इस दिन का विशेष महत्व है. शास्त्रों में इस बारे में कहा गया है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती.
घरों में दीपावली की सजावट भी इसी दिन से प्रारंभ हो जाती है. इस दिन घरों को स्वच्छ कर, रंगोली बनाकर सांझ के समय दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है. इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन खरीदना शुभ माना गया है.
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धनतेरस को चांदी के बर्तन खरीदने से तो अत्यधिक पुण्य लाभ होता है. इस दिन कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशालाएं, कुआं, बावली, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए.
इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्यद्वार पर रखा जाता है. इस दीप को यमदीवा अर्थात यमराज का दीपक कहा जाता है. रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर चार बत्तियां जलाती हैं. दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए. जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर स्त्रियां यम का पूजन करती हैं.
चूंकि यह दीपक मृत्यु के नियंत्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, इसलिए दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन तो करें ही, साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दयादृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो. धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्यद्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है.
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धनतेरस के दिन यमराज को प्रसन्न करने के लिए यमुना स्नान भी किया जाता है या यदि यमुना स्नान संभव न हो तो स्नान करते समय यमुना जी का स्मारण मात्र कर लेने से भी यमराज प्रसन्न होते हैं, क्योंकि मान्यता है कि यमराज और देवी यमुना दोनों ही सूर्य की संतानें होने से आपस में भाई-बहन हैं और दोनों में बड़ा प्रेम है. इसलिए यमराज यमुना का स्नान करके दीपदान करने वालों से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होते और उन्हें अकाल मृत्यु के दोष से मुक्त कर देते हैं.
धनतेरस को मृत्यु के देवता यमराज जी की पूजा करने के लिए संध्याकाल में एक वेदी (पट्टा) पर रोली से स्वास्तिक बनाइए. उस स्वास्तिक पर एक दीपक रखकर उसे प्रज्ज्वलित करें और उसमें एक छिद्रयुक्त कौड़ी डाल दें. अब इस दीपक के चारों ओर तीन बार गंगाजल छिड़कें. दीपक को रोली से तिलक लगाकर अक्षत और मिष्ठान आदि चढ़ाएं. इसके बाद इसमें कुछ दक्षिणा आदि रख दीजिए, जिसे बाद में किसी ब्राह्मण को दे दीजिए.
अब दीपक पर पुष्पाादि अर्पण करें. इसके बाद हाथ जोड़कर दीपक को प्रणाम करें और परिवार के प्रत्येक सदस्य को तिलक लगाएं. इसके बाद इस दीपक को अपने मुख्यद्वार के दाहिनी और रख दीजिए. यम पूजन करने के बाद अंत में धनवंतरि की पूजा करें.
इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है. कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे, जिनका नाम हेम था. दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. ज्योतिषियों ने जब बालक की कुंडली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा, उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा. राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और उसने राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया, जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े. दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गए और उन्होंने गंधर्व विवाह कर लिया.
विवाह के बाद विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे. जब यमदूत राजकुमार के प्राण ले जा रहे थे, उस वक्त उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा, मगर विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा.
यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की, "हे यमराज, क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए?"
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दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले, "हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं, सुनो. कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला, दक्षिण दिशा की ओर भेंट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता." यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं.
दिवाली धन से ज्यादा स्वास्थ्य और पर्यावरण पर आधारित त्योहार है. मौसम में बदलाव और दीपपर्व मे घनिष्ठ संबंध है. इसे समझते हुए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां न की जाए तो अच्छा. पटाखों का उपयोग कम से कम करें, सरसों तेल के दीये जलाएं. सरसों तेल के दीये से दीपोत्सव के धार्मिक निहितार्थ सामाजिक व्यवस्था और आध्यात्मिक उन्नति में अत्यंत सहायक है.
Source : News Nation Bureau